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डॉ. शिवम आत्महत्या कांड…

डॉ. शिवम आत्महत्या कांड..., आरोपियों की अग्रिम जमानत याचिका हुई खारिज, अब उच्च न्यायालय अग्रिम जमानत के लिए लगा रहे दौड़, सीएमएचओ, एएनएम सहित चार को बनाया गया है आरोपी

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अब उच्च न्यायालय अग्रिम जमानत के लिए लगा रहे दौड़, सीएमएचओ, एएनएम सहित चार को बनाया गया है आरोपी

सीधी। डॉ. शिवम आत्महत्या कांड में शामिल आरोपियों की जमानत जिला न्यायालय से खारिज कर दी गई है, आरोपियों के द्वारा अग्रिम जमानत के लिए जिला न्यायालय में अपील दायर की थी, जिसका विरोध अधिवक्ता पंकज पांडेय के द्वारा किया गया, तर्कों को सुनने के बाद न्यायालय के द्वारा अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी गई है अब गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी उच्च न्यायालय की दौड़ लगाने लगे हैं, उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत की याचिका दायर करेंगे, जहां से जमानत मिलने के बाद ही आरोपी कुछ समय के लिए राहत की सांस ले पाएंगे।
उल्लेखनीय है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र चुरहट में पदस्थ डॉ. शिवम मिश्रा अपनी ड्युटी के प्रति मुस्तैद थे, जिनकी लापरवाह कर्मचारियों से नहीं बनती थी। चुरहट स्वास्थ्य केंद्र में पदस्थ स्टाप नर्स अंजना मर्सकोले एक साथ नौकरी करने के साथ ही भोपाल में पढ़ाई कर रही थी, जिसके कारण वह चिकित्सालय नहीं आती थी। बिना सूचना के ही नदारत रहती थी, जो डॉ. शिवम मिश्रा को नागवार गुजरता था, जिसके खिलाफ कार्रवाई के लिए पत्र मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. आरएल वर्मा को लिखा गया। सीएमएचओ के द्वारा दोषी स्टाप नर्स के विरूद्ध कार्रवाई न करते हुए पत्र के संबंध में उसे अवगत करा दिया गया। तब से स्टाप नर्स डॉ. के खिलाफ कूटरचना का जाल बुनना शुरू कर दी। वहीं चुरहट थाना में फर्जी शिकायत प्रस्तुत की गई, छेडख़ानी करने का आरोप लगाया गया। जिस पर तत्काली नगर निरीक्षक रामबाबू चौधरी के द्वारा डॉ. शिवम मिश्रा के खिलाफ भादवि की धारा ३५४, ३२३, एवं एससी एसटी एक्ट की धारा ३(२)(व्हीए) के तहत मामला पंजीवद्ध कर लिया गया। अपनी बदनामी व कूटरचना से तंग आकर डॉ. शिवम मिश्रा के द्वारा अपने शासकीय आवास पर फांसी का फंदा लगाकर जीवन लीला समाप्त कर लिए। जिसकी मजिस्ट्रेटियल जांच में हकीकत सामने आई जिस पर चार आरोपी स्टाप नर्स अंजना मर्सकोले, एएच सिद्धीकी, कृष्ण कुमार पांडेय व तत्कालीन मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. आरएल वर्मा के खिलाफ भादवि की धारा ३०६, १२० बी के तहत मामला पंजीवद्ध कर लिया गया है। जिन्हें जिला न्यायालय से राहत नहीं मिल पाई है।
एट्रोसिटी एक्ट के गलत इस्तेमाल के विरुद्ध सपाक्स ने सौंपा ज्ञापन-
ति एवं जनजाति वर्ग पर अत्याचार को रोकने के लिए सरकार द्वारा एट्रोसिटी एक्ट लागू किया गया है। आज यह बात आम हो गयी है की इस एक्ट के सही उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है। इस वर्ग के ज्यादातर लोग इसे सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों अधिकारियों एवं अन्य व्यक्तियों से अपनी व्यक्तिगत या कार्यालयीन खुन्नस निकालने के लिए इसका बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं। अधिनियम के अनुसार पीडि़त व्यक्ति को सहायता के रूप में एक लाख रुपए से चार लाख रुपए तक की राशि प्रदाय की जाती है। अत: कुछ पेशेवर लोगों ने इसे अपनी आय का साधन भी बना रखा है साथ ही अधिकारियों, कर्मचारियों को ब्लैकमेलिंग करते हुए अवैध वसूली भी की जाती है। सीधी जिले में ही विगत वर्ष डॉ. शिवम आत्महत्या प्रकरण के साथ एक वन मंडलाधिकारी तथा सहायक आयुक्त आदिवासी विकास के विरुद्ध इसी तरह के झूठे प्रकरण दर्ज कराए गए थे। तात्पर्य यह कि इस अधिनियम के दुरुपयोग के चलते सामान्य एवं पिछड़ा वर्ग के अधिकारियों, कर्मचारियों के लिए अपने अधीनस्थ या साथ काम करने वाले लापरवाह एवं अनुशासनहीन कर्मचारियों को नियंत्रण में लाने के लिए की गई कार्रवाई से विभिन्न जांच अधिकारियों तथा पुलिसिया कार्रवाई का दंश झेलना पड़ता है। सपाक्स द्वारा अधिनियम का दुरुपयोग रोकने, ऐसे प्रकरणों पर गहन परीक्षण उपरांत ही कार्रवाई करने तथा फर्जी पाए गए प्रकरणों पर झूठे शिकायतकर्ता के विरुद्ध भी कार्रवाई सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित राज्यपाल, मुख्यमंत्री के नाम संबोधित एक ज्ञापन सपाक्स संस्था के अध्यक्ष जिला आपूर्ति अधिकारी आशुतोष तिवारी के नेतृत्व में प्रतिनिधि मंडल द्वारा कलेक्टर को सौंपा गया।