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भाजपा से इस्तीफा देने के बाद प्रदेश अध्यक्ष पर बरसे पूर्व सांसद, कहा-अब नहीं करूंगा दलगत राजनीति

मप्र के मुख्यमंत्री रहे अर्जुन सिंह के खिलाफ पहला चुनाव लडऩे वाले गोविंद मिश्रा ने छोड़ी पार्टी, नहीं हुई कांग्रेस से कोई डील

सीधीApr 11, 2019 / 04:03 am

Sonelal kushwaha

Former BJP MP Govind Mishra

Former BJP MP Govind Mishra

सीधी. भाजपा में विरोध के स्वर थमने का नाम नहीं ले रहे। नगर पालिका अध्यक्ष व पूर्व भाजपा अध्यक्ष के बाद पूर्व सांसद गोविंद मिश्रा ने भी पार्टी से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने मंगलवार को भोपाल में प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को त्याग पत्र देने के बाद बुधवार को जिला मुख्यालय में पत्रकारवार्ता की। कहा, मैं और राकेश सिंह एक साथ सांसद थे। राकेश में इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि वे मुझसे बात कर सकते। गोविंद मिश्रा ने कांग्रेस की सदस्यता लेने से स्पष्ट मना कर दिया।
समर्थकों ने भी छोड़ी पार्टी
पूर्व सांसद मिश्रा ने कहा कि मैं दलगत राजनीति से ऊपर उठकर राजनीति व समाजसेवा का कार्य करना चाहता हूं। मेरी न कांग्रेस से किसी तरह की डील हुई है न ही अजय सिंह से। पार्टी हमारी उपयोगिता नहीं समझ रही, इसलिए दूरा बना ली है। गोविंद मिश्रा के साथ रामायण तिवारी, प्रदेश कार्यसमिति सदस्य अनुसुइया शुक्ला सहित अन्य समर्थकों ने भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया है।
रेल के लिए किया था प्रयास
सीधी में रेल लाने के प्रयास पर कहा कि मैंने इस दिशा में कितना प्रयास किया है, यह बताने की जरूरत नहीं है, बल्कि शासकीय रिकार्ड ही सब बया कर देंगे। दावा किया कि वर्ष 2009 से 2014 के बीच छुहिया से डढिया तक भू-अधिग्रहण का कार्य करा दिया था। इसी दौरान 250 से लेकर 400 लोगों को नौकरी भी मिली थी। वर्तमान सांसद बता दें कि उनके कार्यकाल में कितने बेरोजगारों को रेलवे को नौकरी मिली है।
पांच साल में ही छोड़ दी थी नौकरी
गोविंद मिश्रा ने 1985 में अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। वे पीडब्ल्यूडी में उपयंत्री थे, लेकिन अर्जुन सिंह को चुनौती देने के लिए पांच साल में ही नौकरी छोड़ दी थी।? तब अर्जुन सिंह मप्र के मुख्यमंत्री थे। 1985 के विधानसभा चुनाव में चुरहट में अर्जुन सिंह (कांग्रेस) व रविनंदन सिंह भाजपा से उम्मीदवार थे। वहीं गोविंद मिश्रा जेएनपी से चुनाव मैदान में उतरे। वे सफल नहीं हुए, लेकिन अर्जुन सिंह के कट्टर विरोधी के रूप में अपनी पहचान बनाई। ९० के चुनाव में भाजपा ने उन्हें प्रत्याशी बनाया। इस बार भी वे अर्जुन सिंह से चुनाव हार गए। लेकिन पटवा सरकार गिरने के बाद १९९३ में वे फिर मैदान में उतरे। इस बार कांग्रेस के चिंतामणि तिवारी को हराकर पहली बार विधायक बने। इसके बाद 2009 में कांग्रेस के कद्दावर नेता इंद्रजीत कुमार को हराकर सांसद निर्वाचित हुए। इसके बाद पार्टी ने उन्हें टिकट ही नहीं दिया। वे भाजपा के जिलाध्यक्ष भी रह चुके हैं।
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