किसानों ने धान की फसल में लाभ मिलने की अपेक्षा के साथ बाजार में हाईब्रिड व रिसर्च बीज खरीद कर बोवनी शुरू किया। इससे उनकी उपज तो बढ़ी साथ ही खेती की लागत भी बढ़ने लगी, क्योंकि खरीदे गए बीज के साथ उन्हें कृ़षि आदान का पैकेज भी खरीदना पड़ता है, जिसमें डीएपी, यूरिया खाद, कीटनाशक दवाइयां आदि शामिल हैं। इससे न केवल खेती की लागत बढ़ी, अपितु इनको पकाने में ज्यादा पानी की आवश्यकता हुई और कीटनाशकों के प्रयोग के कारण मिट्टी और मानव दोनों का स्वास्थ खराब हुआ। ग्राम सुधार समिति ने कुसमी अंचल में किए गए सर्वे में पाया कि 30 वर्ष पूर्व उगाई जाने वाली 115 प्रकार की देशी धान विलुप्त हो गई है। कई तरह की फसल उगाने वाले इस क्षेत्र में खरीफ में 90 प्रतिशत क्षेत्र में धान जाने लगी है, अन्य फसलों का रकबा केवल 10 प्रतिशत में सीमित हो गया। बोई गई कुल धान के रकबे में आईआर 64 धान बोई जाती है। शेष 10 प्रतिशत रकबे में हाईब्रिड धान उगाई जाने लगी। लघु धान्य फसलों में सामा व कुटकी विलुप्त हो गए तथा कोदौ का रकबा भी अत्यधिक न्यून हो गया। इसी तरह दलहनी और तिलहनी फसलों का रकबा भी अत्यधिक कम हो गया। रासायनिक उर्वरक व कीटनाशकों के प्रयोग से कृषि जैव विविधता में कमी हुई है।
जैविक चेतना केंद्र के माध्यम से किसानों को किया जा रहा जागरुक
ग्राम सुधार समिति द्वारा कुसमी विकासखंड के 30 ग्राम पंचायतों के 72 ग्रामों में आदिवासी किसानों के आजीविका को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए मेड़रा और नगन्ना में जैविक चेतना केंद्र की स्थापना की गई है, जिसमें जैविक तरीके से उर्वरक और कीटनाशक तैयार किए जाते हैं और किसानों को बनाने के तरीके भी समझाए जाते हैं।
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जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कुसमी अंचल के 30 ग्राम पंचायतों के 72 ग्रामों में जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्य किया जा रहा है। 6 ग्रामों में किसानों के सहयोग से देशी बीज बैंक की स्थापना की गई है, जहां किसानों को जरूरत के मुताबिक बोवनी के लिए बीज उपलब्ध कराया जाता है। इसके साथ ही दो जैविक चेतना केंद्र भी स्थापित किए गए हैं जहां जैविक तरीके से उर्वरक और कीटनाशक तैयार किए जाते हैं।
अंगिरा प्रसाद मिश्रा, कार्यक्रम अधिकारी, ग्राम सुधार समिति