अब इस महिला के हिम्मत की दाद कौन नहीं देगा। पेट में 9 महीने का गर्भ। फिर भी हरियाणा से चल दी मध्य प्रदेश के सिंगरौली के लिए। कोई साधन नहीं मिला घरवापसी का तो साथ में चल रहे पुरुषों ने रास्ते में साइकिल खरीद ली। पुरुष साइकिल चलाने लगे और महिलाएं पीछे कैरियर पर बच्चों व मय सामान के साथ बैठ गईँ। जैसे-तैसे चल रहा था सफर। करीब 100 किलोमीट का सफर तय हुआ होगा कि एक गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ होने लगी। दर्द असह्य हो गया तो साइकिल रोकी गई। सुरक्षित स्थान खोजा गया। काफी खोजने के बाद पशुओ को बांधऩे वाला एक अड़ार दिखा। उस अड़ार में ही साथ चल रही अन्य महिलाओं ने प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को प्रसव कराया। इसके बाद दो दिन आराम करने के बाद नवजात को गोद में संभाले वह महिला फिर से साइकिल पर बैठ गई और शुरू हो गया सफर।
यानी साइकिल की सवारी, पशुओं के बाड़े में प्रसव। न आराम, न पौष्टिक आहार न ही प्रसव के लिए साफ-सुथरा स्थान। ये कैसी पीड़ा है इसका सहज अनुमान लगा पाना मुश्किल है। लेकिन ये ही हो रहा है। अभी कुछ दिन पहले एक ऐसी ही गर्भवती ने पैदल चलते-चलते हाइवे किनारे बच्चे को जन्म दिया था।
बता दें कि सिंगरौली जिले के सरई का बसोर परिवार मार्च में ही पत्नी-बच्चों के साथ हरियाणा गया था काम की तलाश में। लेकिन वो उधर वहां पहुंचे ही थे कि कोरोना का संक्रमण तेज हुआ और हो गया लॉकडाउन। ऐसे में काम-धंधा बंद हो गया। जेब भी खाली और पेट भी। ऐसे में घर वापसी के सिवाय कोई चारा नहीं था। सो चल दिया। चंडीगढ में सेकेंडहैंड साइकिल खरीदी गई। फिर साइकिल पर पूरा परिवार चलने लगा। इसी में वह गर्भवती महिला भी थी। खैर किसी तरह 15 दिन की साइकिल यात्रा पूरी कर वो शुक्रवार को पहुंचे सीधी। वहीं पत्रिका टीम के साथ अपनी आपबीती साझा की।