साप्ताहिक वीसी में भी उठता रहा मुद्दा
लेनदेन की विफलता के मुद्दों से निपटने और योजना में पंजीकृत किसान परिवारों को भुगतान के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की ओर से मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) भी जारी की गई। विभाग की साप्ताहिक वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में भी राज्य को इस काम में तेजी लाने को कहा जाता रहा है। ऐसे लेनदेन विफलता रिकॉर्ड पीएम किसान पोर्टल के सुधार माड्यूल टैब के तहत राज्य क्षेत्र में खोले जाते हैं।
यों समझें लापरवाही का गणित
– 2,19,125 किश्तें नहीं पहुंची प्रदेश में फरवरी 2019 से जून 2021 तक
– 43 करोड़ 82 लाख 50 हजार रुपए नहीं पहुंचे थे किसानों के खातो में
– 1,59,921 किश्तें सुधार के बावजूद अटकी थी जून 2021 में
– 31 करोड़ 98 लाख 42 हजार मूल्य की किश्तें थी लंबित जून 2021 में
हजारों आवेदन ‘स्टेट लेवल पर पेंडिंग’
केस एक : सीकर जिले के किसान इंद्र सिंह ने किसान सम्मान निधि योजना में 17 फरवरी 2020 को आवेदन किया था। अभी तक इनका आवेदन स्टेट लेवल पर पेंडिंग शो हो रहा है। आवेदन के 22 माह बाद भी किसान को योजना का लाभ नहीं मिल रहा।
केस दो : सुंदरपुरा निवासी कुशाल सिंह ने योजना के शुरू होने के साथ ही सभी दस्तावेज ईमित्र पर देकर आवेदन किया था, लेकिन अब तक भी स्टेट लेवल पर पेंडिंग दिखा रहा है। ई मित्र पर चक्कर लगाते थक गया, लेकिन कोई कारण नहीं बताया जा रहा। कमी का पता चले तो उसकी पूर्ति कर योजना का लाभ ले सके।
सरकार ने बताए ये कारण
खाता बंद या स्थानांतरित, अमान्य आइएफसी, खाता निष्क्रिय, खाता प्रसुप्त, प्रति लेनदेन क्रेडिट/डेबिट के लिए बैंक द्वारा खाते में निर्धारित सीमा से अधिक राशि, खाता धारक की समय सीमा समाप्त, खाता अवरुद्ध या स्थिर, निष्क्रिय आधार और नेटवर्क विफलता जैसे कारणों के कारण प्रदेश के हजारों किसानों के खातों में किश्त नहीं पहुंच पाई।
इधर, अपात्रों ने उठा लिए 147 करोड़
राजस्थान में आयकर दाता सहित कुल 2 लाख 18 हजार 934 अपात्र लाभार्थियों को 147 करोड़ रुपए से अधिक का भुगतान किया गया। केंद्र के निर्देश के बाद राज्य सरकार के स्तर पर इनसे वसूली की प्रक्रिया जारी है।
एक्सपर्ट व्यू : विवरण सही भरें
किसानों को जमाबंदी, आधार कार्ड व बैंक खाते का विवरण सही दर्ज करवाना चाहिए। सभी दस्तावेजों में किसान का नाम एक जैसा होना चाहिए। योजना के तहत सीकर मे 1.80 लाख तथा राजस्थान में करीब 80 लाख किसानों को लाभ मिल रहा है।
सुधेश पूनिया, बैंकिंग विशेषज्ञ