85 साल के बुजुर्ग ने सपत्नीक निभाई जात की रस्म
अनेक नव विवाहित जोड़ों के साथ-साथ 85 वर्षीय एक भक्त ने पत्नी के साथ माता के दरबार में जात की परम्परागत रस्म निभाई। आंतरी के 85 वर्षीय एक वृद्ध ने बताया कि घर गृहस्थी के झंझट में शादी के कई दिन बाद तक अपनी कुलदेवी के जात से धोक लगाने की रस्म नहीं निभा पाया था। उम्र के इस पड़ाव पर माता के दरबार में जात की रस्म परिवार वालों के साथ लगाकर मन को सकून मिल गया। इस अनूठे जोड़े ने जब गठजोड़ा पकड़ कर माता की पूजा अर्चना की तो परिवार जन व पुजारी गण भी हंसी ठिठोली से खुद को नहीं रोक पाए।
ईसर-गणगौर को मूर्तरूप देते हंै ग्यारसीलाल
चला. आज जहां लोग पुश्तैनी काम-काज को भूलते जा रहे हैं वहीं गुहाला के वार्ड नौ के मोहल्ला मालियान निवासी ग्यारसीलाल कुमावत ईसर-गणगौर की कलाकृतियों को नि:स्वार्थ भाव से मूर्तरूप देकर आस्था की अलख जगा रहे हंै। कुमावत पीढ़ी दर पीढ़ इस पुश्तैनी परम्पराओं को जीवंत रखने का प्रयास कर रहे हैं। इस कला के मध्य नजर इन दिनों ने ईसर-गणगौर की मूर्तियों को चाक के माध्यम से तराश क? गणगौर र पूजने वाली महिलाओं, बालाओं को भेंट कर पुण्य कमा रहे हंै। ग्यारसीलाल अपने आजीविका चलाने के लिए मुम्बई में टाइल ठेकेदारी का कार्य करते हैं। मगर गणगौर के त्योहार के अवसर पर अपने सारे काम-काज छोडकऱ ईसर-गणगौर की मूर्ति कलाकृति के माध्यम से नि:स्वार्थ भाव से सेवा जज्बा जारी रखते है। ग्यारसीलाल लगभग 45 सालों से अपनी पुश्तैनी कलाकृति को निखार कर इतिहास के पन्नों को जीवंत रखे हुए है। इस काम में उनकी पत्नी भी सहयोग करती है। रोशनलाल स्वामी, रामकिशोर कुमावत, प्रधानाचार्य तेजपाल सैनी आदि ने बताया कि ग्यारसीलाल के अलावा गांव में ईसर-गणगौर की मूर्ति बनाने वाला और कोई नहीं है।