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निशुल्क मिलने वाली किताबें भी बाजार से खरीदने को मजबूर

सरकारी स्कूलों के बच्चे शारीरिक और स्वास्थ्य शिक्षा की पुस्तकें बाजार से खरीदने पर मजबूर

सीकरNov 03, 2019 / 06:02 pm

Gaurav

निशुल्क मिलने वाली किताबें भी बाजार से खरीदने को मजबूर

निशुल्क मिलने वाली किताबें भी बाजार से खरीदने को मजबूर

सीकर. सरकारी स्कूलों के बच्चों को हर साल शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा तथा कला शिक्षा की पुस्तकें बाजार से खरीदने पड़ रही हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा व कला शिक्षा विषय को अनिवार्य शिक्षा के रूप में सम्मिलित किया गया। स्कूलों में नामांकित बच्चों के स्वास्थ्य, सृजनात्मक, बौद्धिक विकास के लिए शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा तथा कला शिक्षा की किताबें अतिआवश्यक हैं। लेकिन हर साल निजी विक्रेता इन निशुल्क किताबों को खरीदकर बच्चों से मनचाही राशि वसूल कर रहे हैं। इसके चलते सरकारी स्कूलों के हजारों बच्चें हर साल इन किताबों से वंचित रहते हैं।
स्कूल स्तर पर होता मूल्यांकन
स्कूल स्तर पर दोनों विषयों की प्रायोगिक, सैद्धांतिक परीक्षाएं एवं मूल्यांकन के अंक व ग्रेडिंग बच्चों की अंकतालिकाओं में भरे जाते हैं। लेकिन इस बारे में राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड अजमेर का तर्क है कि जिन विषयों में बोर्ड की ओर से परीक्षा नही ली जाती है, उन विषयों की पाठ्य पुस्तकें नि:शुल्क वितरण में सम्मिलित नही होती हैं। जबकि अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के तहत बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने का प्रावधान हैं।
नामांकन की स्थिति
प्रदेश के सरकारी स्कूलों में वर्ष 2016 में कक्षा नौ व 10 का नामांकन करीब 1128215 रहा। उसके बाद सत्र 2017-़18 में नामांकन 1175418 और सत्र 2018-19 तथा 2019-20 का नामांकन 11 लाख से अधिक रहा।
कला शिक्षा में नहीं शिक्षक का एक पद सृजित
कला शिक्षा विषय के लिए एक भी पद सृजित नहीं है। जबकि शारीरिक एवं स्वास्थ्य शिक्षा के लिए बकायदा शारीरिक द्वितीय व तृतीय श्रेणी के अनुदेशकों के पद सृजित है, और हजारों शारीरिक शिक्षक अनुदेशक राजकीय स्कूलों में कार्यरत है। लेकिन अनिवार्य कला शिक्षा विषय के लिए एक भी कला शिक्षक अनुदेशक का पद तक सृजित नहीं है। यही कारण है कि दिनों दिन बच्चों में तनाव की स्थिति बढ़ती जा रही हैं।

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