scriptGangaur Special: भाभी की मजाक पर बनी थी मेड़ता जैसी गणगौर, आज भी निभाई जा रही दो राजशाही परंपरा | Gangaur like Merta was made on sister-in-law's joke in sikar | Patrika News
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Gangaur Special: भाभी की मजाक पर बनी थी मेड़ता जैसी गणगौर, आज भी निभाई जा रही दो राजशाही परंपरा

Gangaur 2023: सीकर शहर में गणगौर की सवारी शुक्रवार को शाही लवाजमे के साथ धूमधाम से निकलेगी। 3 बग्गी, 25-25 वादकों के विशेष बैंड, 11 घोड़ी व 4 ऊंटों के बीच ईसर व गणगौर शाही रथ पर नगर भ्रमण को निकलेंगे।

सीकरMar 24, 2023 / 12:23 pm

Sachin

Gangaur 2023

भाभी की मजाक पर बनी थी मेड़ता जैसी गणगौर, आज भी निभाई जा रही दो राजशाही परंपरा

Gangaur 2023: सीकर शहर में गणगौर की सवारी शुक्रवार को शाही लवाजमे के साथ धूमधाम से निकलेगी। 3 बग्गी, 25-25 वादकों के विशेष बैंड, 11 घोड़ी व 4 ऊंटों के बीच ईसर व गणगौर शाही रथ पर नगर भ्रमण को निकलेंगे। जिसकी यात्रा शाम सवा पांच बजे रघुनाथजी के मंदिर से रवाना होगी। शहर का चक्कर लगाते हुए यात्रा रामलीला मैदान पहुंचेगी। जहां गणगौर विसर्जन की परंपरागत रस्म निभाई जाएगी। इससे पहले आज हम आपको मेड़ता की तर्ज पर बनी सीकर की गणगौर के निर्माण से जुड़ा रोचक किस्सा बताने रहे हैं। जो देवर- भाभी के मजाक से जुड़ा है।

खिचड़ी में घी को लेकर हुई थी मजाक
इतिहासकार महावीर पुरोहित के अनुसार सीकर की स्थापना के साथ ही शहर में गणगौर की सवारी शुरू हो गई थी। जो 1839 तक बेहद साधारण तरीके से निकलती थी। लेकिन, आठवें शासक राव देवी सिंह के समय भाभी की देवर से की गई एक मजाक की वजह से सीकर में मेड़ता की तर्ज पर गणगौर बनवाकर शाही सवारी निकालना शुरू किया गया। बकौल पुरोहित रियासत में एक दिन जय व विजय नाम के दो भाई घर में खाना खा रहे थे। इनमें से विजय ने अपनी भाभी को खिचड़ी में घी डालने की बात कही।

जिसे सुन भाभी ने मजाक में पूछ लिया कि ज्यादा घी खाकर क्या मेड़ता की गणगौर जैसी पत्नी लाओगे? ये सुन दोनों भाइयों के मन में मेड़ता की गणगौर लाने की ठन गई और वे राव देवी सिंह के पास पहुंच गए। जहां उन्होंने मेड़ता की गणगौर लाने की मंशा जताई। यह सुन देवी सिंह ने मेड़ता की गणगौर लाने की बजाय वैसी नई गणगौर बनवाने की बात कही और इसके लिए अपने कारीगर मेड़ता भेज दिए।

जहां की गणगौर देख कारीगरों ने 1840 में सीकर के लिए भी मेड़ता जैसी लकड़ी की गणगौर बना दी। तभी से गणगौर व तीज की शाही लवाजमे के साथ शोभायात्रा भी शुरू हो गई। सांस्कृतिक मंडल के मंत्री जानकी प्रसाद इंदौेरिया ने बताया कि पहले गणगौर की शोभायात्रा राजघराने की ओर से निकाली जाती थी। 1967 में राव राजा कल्याण सिंह ने यह जिम्मेदारी सांस्कृतिक मंडल को दे दी।

आज भी निभाई जा रही दो राजशाही परंपरा
गणगौर की शोभायात्रा में अब भी दो राजशाही परंपरा निभाई जा रही है। इंदौरिया ने बताया कि रघुनाथजी के मंदिर से रवाना होने पर यात्रा को राजघराने की परंपरानुसार अब भी सुभाष चौक स्थित गढ़ के सामने ले जाया जाता है। वहां से चक्कर लगाने के बाद यात्रा वापस बावड़ी गेट होकर आगे बढ़ती है। दूसरी परंपरा राजघराने का निशान ले जाने की है। जिसे गणगौर की सवारी मेंं सबसे आगे घोड़े पर चलने वाला शख्स हाथ में लेकर चलता है।

इस रूट से निकलेगी 239 वीं यात्रा
गणगौर की सवारी इस बार 239वीं बार निकलेगी। कोरोना काल में दो साल शोभायात्रा नहीं निकली थी। यात्रा बावड़ी गेट स्थित रुघनाथजी के मंदिर से शुरू होकर जाट बाजार, सूरजपोल गेट, घंटाघर, नया दूजोद गेट होते हुए रामलीला मैदान पहुंचेगी। माधव स्कूल के सामने स्थित कुए पर विसर्जन की परंपरा के बाद यात्रा वापस रघुनाथजी के मंदिर पहुंचेगी।

सिंजारे पर रचाई मेहंदी
शहर सहित जिलेभर में गुरुवार को सिंजारा पर्व मनाया गया। जिसमें महिलाओं व युवतियों ने हाथों पर मेहंदी रचाई। घरों में पकवान बनाने के साथ महिलाओं को उपहार भी दिए गए। शुक्रवार को दिनभर गणगौर की पूजा के शाम को गणगौर विसर्जन की रस्म होगी।

https://youtu.be/YuIdQg6XEK8

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