दोपहर को मैंने एक बजे उनको फोन किया तो उनका फोन बंद आ रहा था। बच्चे स्कूल से आए ही थे। मैं उन्हें ड्रेस चेंज करवा रही थी। फिर पड़ोसी महिला ने आकर कहा कि परी की मम्मी आपने परी के पापा से बात की क्या….मैंने उन्हें फोन किया तो उनका फोन फिर बंद मिला। टीवी चलाया, तो खबर सुनते ही दिल लरज गया। टीवी पर उनकी मौत की खबर चल रही थी।
तिहावली गांव गुरुवार को भी सिसकता रहा। अपने लाडले को खोने का दर्द गांव के लोगों के चेहरों पर साफ नजर आ रहा था। इस दौरान कुछ समय के लिए रतनलाल की पत्नी पूनम से बात हुई, तो उनके दिल के कई गुबार फूट पड़े। शहीद वीरांगना पूनम को गुस्सा भी था कि जब समस्या पैदा हुई है, तो सरकार को इसका समाधान भी करना चाहिए। लोग विरोध कर रहे हैं।
इन दंगाइयों के सामने निहत्थे पुलिसवालों को क्यों खड़ा कर दिया जाता है, कम से कम पुलिस को भी हथियार देने चाहिए, ताकि वे स्थिति पर कंट्रोल तो कर सके। मैंने देखा था एक दंगाई गोली चला रहा था और एक पुलिसवाला उसके सामने निहत्था खड़ा था। पुलिस को भी हथियार दिए जाने चाहिए। पुलिस वाले भी किसी के पिता, किसी के बेटे हैं। इतना कहते हुए पूनम सिसक पड़ी।
भावुक होकर पूनम ने कहा कि वह कैसे संभालेगी परिवार को, तीन बच्चों को। पूनम ने बताया कि बच्चों के एग्जाम चल रहे थे। बड़ी बेटी सिद्धी का सोमवार को ही पहला पेपर था। कहा कि उनके हत्यारों को गिरफ्तार कर फांसी देनी चाहिए।
पूनम ने बताया कि परी के पापा ड्यूटी के बहुत पक्के थे। वह हमेशा समय पर ड्यूटी जाते थे। साथ ही बेहद ईमानदार भी थे। उन्होंने कभी किसी का गलत काम नहीं किया।
रतनलाल के भाई ने बताया कि रतनलाल का सोमवार से खास नाता था। रतनलाल का जन्म सोमवार को हुआए दिल्ली पुलिस में उनकी नौकरी भी सोमवार को ही लगी। इसके बाद उनकी शादी भी सोमवार को ही हुई थी। रतनलाल का निधन भी सोमवार को ही हुआ। हर परिस्थिति में सोमवार का व्रत रखते थे।
रतनलाल को अपनी मूंछों से विशेष प्रेम था। वह कई वर्षों से इस तरह की मूंछे रख रहे थे। ढाई वर्ष पहले पिता के निधन के समय भी रतनलाल ने मूंछे नहीं कटवाई थी। वह मूंछे हमेशा इसी तरह से ही रखते थे।
भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनियां शनिवार को शेखावाटी के दौरे पर रहेंगे। जयपुर से सुबह सात बजे चलकर सुबह साढ़े नौ बजे तिहावली स्थित शहीद रतनलाल बारी के घर आएंगे।