scriptVideo सेना दिवस : राजस्थान के इस मुस्लिम बाहुल्य गांव से आज भी खौफ खाता है पाकिस्तान, नाम सुनते ही काँप उठती है पाक सेना | Indian Army Day : Story of Dhanuri village of Jhunjhunu | Patrika News
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Video सेना दिवस : राजस्थान के इस मुस्लिम बाहुल्य गांव से आज भी खौफ खाता है पाकिस्तान, नाम सुनते ही काँप उठती है पाक सेना

आज 15 जनवरी 2018 को भारत अपना 70वां आर्मी दिवस मना रहा है। आइए, इस खास मौके पर हम आपको झुंझुनूं जिले के गांव धनूरी से वाकिफ करवाते हैं।

सीकरJan 15, 2018 / 07:18 pm

vishwanath saini

Dhanuri village
सीकर.
पाक अपनी पैदाइश के बाद से ही हिन्दुस्तान के साथ नापाक हरकतें करने से बाज नहीं आता रहा है। परन्तु हर बार पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी है। पाकिस्तान को धूल चटाने में राजस्थान के झुंझुनूं जिले के बहादुर फौजी बेटों ने हमेशा ही अदम्य साहस दिखाया है।
भारत-पाक के बीच 1965,1971 व 1999 में हुए युद्धों में भी यहां के बेटे बहादुर से लड़े थे। तभी तो झुंझुनूं जिले के ही गांव धनूरी से आज भी पाकिस्तान की पूरी फौज खौफ खाती है। खास बात यह है कि धनूरी गांव मुस्लिम बाहुल्य हैं।
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आज 15 जनवरी 2018 को भारत अपना 70वां आर्मी दिवस मना रहा है। आइए, इस खास मौके पर हम आपको झुंझुनूं जिले के गांव धनूरी से वाकिफ करवाते हैं।
गांव धनूरी, जिला झुंझुनूं राजस्थान, सबसे ज्यादा शहीद

-धनूरी गांव झुंझुनूं जिला मुख्यालय से करीब 14 किलोमीटर दूर है। यह गांव झुंझुनूं-अलसीसर मार्ग पर स्थित है।
-यहां के कई परिवारों में चार-चार पीढिय़ां के लोग भारतीय सेना में सेवाएं दे चुके हैं। यह परम्परा आज भी जारी है।
-पूरे धनूरी गांव में करीब 600 से ज्यादा बेटे फौज में भर्ती हुए हैं। इनमें से 18 शहीद भी हो चुके हैं।
-विभिन्न युद्धों में एक ही गांव से 18 बेटे शहीद होने के मामले में धनूरी पूरे राजस्थान में अव्वल में है।
-भारत-पाक युद्ध 1971 में धनूरी के मेजर महमूद हसन खां, जाफर अली खां और कुतबुद्दीन खां शहीद हुए थे।
– 1999 के करगिल युद्ध में गांव धनूरी के मोहम्मद रमजान खां ने बहादुरी दिखाई थी।
Dhanuri village jhunjhunu
शहीद के नाम पर पहला स्कूल भी यहीं खुला

गांव धनूरी के माध्यमिक विद्यालय का नामकरण 1971 में शहीद हुए मेजर महमूद हसन खान के नाम पर मेजर एमएच खान राजकीय आदर्श माध्यमिक विद्यालय रखा हुआ है। कहा जाता है कि राजस्थान में स्कूलों में का नाम शहीदों के नाम पर रखे जाने के परम्परा धनूरी गांव से ही शुरू हुई थी। भारत-पाक युद्ध में मेजर एमएच खान के शहीद होने के बाद 72 दिन में स्कूल का नामकरण हो गया था।
धनूरी की कई पीढिय़ां सेना में

गांव धनूरी के आठ भाइयों में से सात भाइयों ने फौज को चुना था। यहां के मो. इलियास खान वर्ष 1962 की लड़ाई में शहीद हो गए थे। इनके भाई सुबेदार निसार अहमद खान, सरवर खां, कैप्टन नियाज माहम्मद खां, मो. इकबाल खां, शब्बीर अली खां व अब्दुल अजीज खां हैं। इसके अलावा शहीद कुतुबुद्दीन खां के बेटे कप्तान मोइनुदीन खां, इनके बेटे कर्नल जमील खां और जमील खां का बेटा वर्तमान में लेफ्टिेनेंट के पद पर फौज में भर्ती है। इनकी चार पीढिय़ों देश सेवा कर रही हैं। इसके अलावा गांव के बिग्रेडियर अहमद अली खां के बेटे सत्तार खां और इनके भाई निसार खां देश सेवा में हैं। सत्तार खां का बेटा गफ्फार खां व जब्बार खां तथा निसार खां का बेटा इरसाद खां देश की सेवा कर रहे हैं।
Dhanuri village jhunjhunu
धनूरी के बेटों ने विश्व युद्धों में भी दिखाई बहादुरी

गांव धनूरी के बेटों ने भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों में ही नहीं बल्कि प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में भी बहादुरी दिखाई थी। प्रथम विश्व युद्ध में धनूरी के बेटे करीम बख्स खां, करीम खां, अजीमुद्दीन खां, द्वितीय विश्व युद्ध में ताज मोहम्मद खां, इमाम अली खां शहीद हुए थेे।

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