मटके भी गायब
कलक्ट्रेट में बहुत सी प्याऊ बनी हुई है, लेकिन उनमें से एक दो को छोडक़र अधिकांश सूखी पड़ी है। किसी में मटके ही नहीं हैं तो किसी में पानी की टंकी जर्जर हो गई है। किसी का नल खराब है तो किसी पर ताला जड़ा हुआ है। जो चार प्याऊ हैं उनमें से तीन का तो पक्का निर्माण हो रखा है। एक में तो लाइट भी फिटिंग हो रखी है। लोहे की जालियों से एक अस्थाई प्याऊ बनाई गई थी, उसमें मटकों को आपस में जोड़ा गया था। मटकों का यह शीतल पेयजल जनता के हलक तर कर रहा था, लेकिन अब इस अस्थाई प्याऊ में मटके तक नहीं है। उसके चारों तरफ लगी लोहे की जाली भी टूट चुकी है। उसकी छत भी जर्जर हो चुकी है।
जेब हो रही ढीली
कलक्ट्रेट में शीतल पानी की प्याऊ नहीं होने से जनता को बाहर से महंगे दामों पर पानी की बोतल खरीदनी पड़ रही है। इस कारण उन पर आर्थिक बोझ पड़ रहा है। एक बोतल के पंद्रह से पच्चीस रुपए तक लग रहे हैं। यदि एक ही परिवार के चार फरियादी आ जाएं तो सौ रुपए तो पानी पर ही खर्च हो जाएंगे।
फिल्टर भी नहीं
वर्तमान में जो प्याऊ लगी हुई उनमें भी अधिकांश में फिल्टर प्लांट नहीं लगा हुआ। फिल्टर पानी नहीं आने से जनता को मजबूरी में फ्लोराइड युक्त पानी पीना पड़ रहा है। इस कारण उनको फ्लोरोसिस से संबंधित बीमारियां जकड़ रही है। हड्डियां कमजोर हो रही है तो दंात पीले पड़ रहे हैं।
यह है विकल्प
जानकारों का कहना है जिला कलक्टर चाहें तो सोमवार को ही चारों प्याऊ शुरू करवा सकते हैं। इसके लिए किसी स्वयं सेवी संस्था, दानदाता या किसी समाजसेवी संगठन की मदद ली जा सकती है। इसके अलावा चारों प्याऊ का संचालन पहले कैसे होता था, उनकी मदद से पवित्र वैशाख माह में फिर से जनता के हलक तर किए जा सकते हैं।