वर्षों बाद बना ये दुर्लभ संयोग, जाने इस खबर में
वट सावित्री व्रत पर सोमवती अमावस्या का संयोग, सर्वार्थ सिद्धि और त्रिग्रही योग भी बनेगा
वर्षों बाद बना ये दुर्लभ संयोग, जाने इस खबर में
सीकर. वट सावित्री व्रत, शनि जयंती, सोमवती अमावस्या का संयोग तीन जून को चंद्र अधि, सर्वार्थ सिद्धि व त्रिग्रही योग में मनाया जाएगा। इन योगों में पूजन और दान-पुण्य करने से पितृ दोष की शांति, शनि के अशुभ प्रभाव का निवारण और पति की दीर्घायु होती है। इस दिन सूर्योदय से लेकर रात्रि तक सर्वार्थ सिद्धि योग भी रहेगा। मिथुन राशि में मंगल, बुद्ध और राहु से त्रिग्रही योग बनेगा।
प. दिनेश मिश्रा ने बताया कि सोमवती अमावस्या के दिन यह योग कई वर्षों बाद बन रहा है। इस योग में दान-पुण्य, तीर्थ में स्नान का बड़ा महत्व है। पितृ दोष की शांति के लिए तर्पण एवं गीता का पाठ करना चाहिए। सोमवती अमावस्या के दिन शनि जयंती होने के कारण जिन लोगों को शनि की ढैया या साढ़े साती लगी है, उन्हें सरसों के तेल से शनि का अभिषेक, शनि मंत्र का जाप एवं अपाहिज या निर्धन व्यक्ति को भोजन कराना चाहिए।
वट सावित्री का व्रत भी इसी दिन है। महिलाएं वट वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु का पूजन कर पति के दीर्घायु होने की कामना करती हैं। सोमवती अमावस्या के दिन तुलसी की 108 परिक्रमा करने से दरिद्रता मिटती है। सोमवती अमावस्या के दिन मौन रहने के भी बड़ा महत्व है।
शनि की शांति के लिए पीपल की पूजा
किसी भी माह में सोमवार को पडऩे वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहा जाता है। इस दिन उपवास करते हुए पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर शनि मंत्र का जाप करना चाहिए और परिक्रमा करते हुए भगवान विष्णु व पीपल वृक्ष की पूजा करना चाहिए। ज्येष्ठ माह की अमावस्या को अनेक जगह शनि जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की पूजा करने से शनि के कोप का भाजन बनने से बचा जा सकता है। शनि के प्रकोप को झेल रहा है तो कल्याणकारी होगा।
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