खासतौर पर शैक्षणिक स्टॉफ की भारी कमी के बावजूद उच्च शिक्षा विभाग की ओर से अतिथि विद्वानों की नियुक्ति को लेकर कवायद शून्य है। जबकि कक्षा संचालन से पहले प्रवेश कार्य को पूरा करने के लिए भी प्राध्यापकों की कमी खलेगी। जिले के शासकीय कॉलेजों की स्थिति पर गौर किया जाए तो सभी 10 कॉलेज प्रभारी प्राचार्य के भरोसे चल रहे हैं।
शासकीय कॉलेज देवसर व शासकीय कॉलेज बरका को छोड़ दिया जाए तो सभी आठ कॉलेजों में प्राचार्य का प्रभार शासकीय अग्रणी कॉलेज वैढऩ के प्राचार्य प्रो. एमयू सिद्दीकी के पास है। कॉलेजों में प्राध्यापकों की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। अभी हाल ही 12 प्राध्यापकों की नियुक्ति होने के बावजूद शासकीय कॉलेज रजमिलान, शासकीय कॉलेज सरई व शासकीय कॉलेज चितरंगी में केवल एक-एक नियमित प्राध्यापक हैं।
शासकीय कॉलेज माड़ा में नौ में से 6 पद खाली हैं। बाकी के दूसरे कॉलेजों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं है। बाकी के कॉलेजों में भी करीब आधे पद खाली हैं। जाहिर सी बात है कि ऐसे में छात्र-छात्राओं की पढ़ाई कैसे होगी, यह समझ से परे है। विभाग के अधिकारी भी इस पर गौर नहीं फरमा रहे हैं।
ग्रंथपाल व क्रीड़ाधिकारी के पद स्वीकृत
प्राध्यापकों के साथ दूसरे स्टॉफ की भी भारी कमी है। यह बात और है कि कई कॉलेजों के लिए ग्रंथपाल व क्रीड़ाधिकारी के पद स्वीकृत किए गए हैं, लेकिन अभी नियुक्ति होना बाकी है। जब तक इन पदों पर नियुक्ति नहीं हो जाती है। पूरा कार्य प्राध्यापकों को ही संभालना होगा। ऐसे में अतिथि विद्वानों की नियुक्ति जरूरी समझी जा रही है।
तीन शासकीय कॉलेजों के पास भवन नहीं
जिले में उच्च शिक्षा की स्थिति का अंदाज महज इस बात से लगाया जा सकता है कि अभी तक तीन कॉलेजों के पास खुद की बिल्डिंग नहीं है। दो या तीन कमरों में पूरा कॉलेज संचालित किया जा रहा है। शासकीय कॉलेज बरगवां की करें तो वह किराए के भवन में चल रहा है। जबकि माड़ा व रजमिलान के कॉलेज शासकीय स्कूल व वेटनरी के भवन में संचालित हो रहा है।