खाद्य पदार्थों में मिलावटखोरी रोकने और नकली दवाओं पर लगाम लगाने के लिए करीब छह साल पहले समूचे देश में खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन विभाग का गठन किया गया था। इस कानून के तहत 12 लाख रुए से कम सालाना टर्न ओवर वाले कारोबारियों को सिर्फ रजिस्ट्रेशन कराना था। इसकी फीस सिर्फ 100 रुपए सालाना तय की गई थी। साथ ही सभी खाद्य पदार्थ बेचने वाले दुकानदारों को रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य था। विभाग की ओर से नई व्यवस्था के तहत रजिस्ट्रेशन कराने वाले दुकानदारों को फोटोयुक्त रजिस्ट्रेशन कार्ड विभाग की ओर से जारी किए जाने थे।
नई व्यवस्था के तहत मिलावटखोरों के खिलाफ 10 लाख रुपए का जुर्माना और आजीवन कारावास का प्रावधान किया गया है। अगर किसी खाद्य पदार्थ में साधारण मिलावट पाई गई तो तीन लाख रुपए तक का जुर्माना होगा। साधारण मिलावट से संबंधित मुकदमे की सुनवाई एडीएम स्तर का अधिकारी करेगा। खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम के तहत खाद्य पदार्थ में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक तत्वों की मिलावट पाए जाने पर अधिकतम 10 लाख तक का जुर्माना व आजीवन कारावास भी हो सकता है। गभीर किस्म की मिलावट के मुकदमे की सुनवाई अपर सत्र न्यायाधीश के कोर्ट में दाखिल किए जाते हैं।
जिले में सिर्फ दो अधिकारी साबिर अली खान और पुष्पक द्विवेदी हैं। स्टाफ कम हाने की वजह से प्रक्रिया धीमी है। इसीलिए नई व्यवस्था इस जिले में सुचारू रूप से चल नहीं सकी। लिहाजा, मिलावट खोरी का धंधा धड़ल्ले से चल रहा है। नई व्यवस्था के तहत सरकारी प्रयोगशालाओं के साथ ही हर मंडल के लिए निजी प्रयोग शाला का चयन किया जाना था। शायद ऐसा नहीं हो पाया। तभी तो सैंपल जांच के लिए भोपाल भेजे जाते हैं। नई व्यवस्था में कारोबारियों को यह छूट दी गई है कि अगर उन्हें सरकारी प्रयोगशाल की जांच पर संदेह हो तो वे निजी प्रयोगशाला में खाद्य पदार्थों की जांच करा सकें।
साबिर अली, खाद्य सुरक्षा अधिकारी