काचन बांध से निकलने वाली मुख्य नहर व इसकी दो शाखााओं की हालत बीते कुछ वर्षों मेंं क्षतिग्रस्त हो गई। नहरों के दोनों किनारे कच्चे होने के कारण काफी जगह से मिट्टी बह गई और वे कमजोर हो गए। इस कारण वर्षा, तूफान के समय इनके टूटने का खतरा हो चला था। इस कारण नहरों को मरम्मत की दरकार थी। इसलिए नहरों की मरम्मत व इनको पक्का किए जाने के लिए स्थानीय जल संसाधन विभाग की ओर से बीते वर्ष शासन को प्रस्ताव पर भेजा गया। इस पर शासन की ओर से इस वर्ष प्रस्ताव के अनुसार मुख्य नहर सहित नौगढ़ व खुटार शाखा की मरम्मत व लाइनिंग के लिए तीन करोड़ ५७ लाख रुपए जारी किए गए। मुख्यालय के स्तर पर इन कार्यों के लिए टेंडर प्रक्रिया फरवरी में पूरी की गई तथा अपे्रल मेें इन कामों की शुरूआत हो गई।
जल संसाधन विभाग सूत्रों ने बताया कि टेंडर के अनुसार काचन बांध से निकलने वाली मुख्य नहर सहित दोनों शाखाओं को २३ किलोमीटर लंबाई में पक्का करने का काम कराया जाएगा। अब तक मुख्य नहर की लाइनिंग का आधा काम हुआ है। इसकी लगभग चार किलोमीटर लंबाई में पक्की लाइनिंग होना शेष है। इसी प्रकार खुटार शाखा के दोनों किनारे लगभग पांच किलोमीटर लंबाई में पक्के हो गए तथा अब चार किलोमीटर की लाइनिंग शेष रही है। बताया गया कि दूसरी वितरिका नौगढ़ शाखा को छह किलोमीटर लंबाई तक पक्का किया जाएगा। इसमेंंं से अब तक लगभग ढाई किलोमीटर लंबाई में नहर के किनारों को पक्का किया जा चुका है। बताया गया कि शेष काम तेजी से जारी है तथा विभाग की ओर से इन कामों की निगरानी की जा रही है।
अधिकारी सूत्रों ने माना कि काचन बांध की मुख्य नहर व शाखाओं की लाइनिंग होने से उनमें पानी की क्षति या लीकेज न्यूनतम हो जाएगा। इससे पानी की बचत होगी और इसका किसानों को सिंचाई में लाभ मिलेगा। पक्की होने के बाद नहरों के आंधी, तूफान या तेज वर्षा में टूटने या क्षतिग्रस्त होने की आशंका भी कम हो जाएगी। इससे नहरों का लंबे समय तक सिंचाई में उपयोग हो सकेगा।
मंडराने लगा था खतरा
काचन सिंचाई परियोजना लगभग ढाई दशक पुरानी है। इस परियोजना क्षेत्र में काचन बांध से निकले वाली मुख्य नहर तथा नौगढ़ व खुटार शाखाओं व कुछ माइनरों के जरिए खेतों तक पानी पहुंचाया जाता है। मगर निर्माण के बाद मुख्य नहर व शाखाओं की अब तक बेहतर मरम्मत नहीं हुई। इस कारण इस परियोजना में शामिल समूचे क्षेत्र में सिंचाई का मुख्य आधार नहरें क्षतिग्रस्त हालत में पहुंच गई। इसलिए उनसे भविष्य में अधिक समय तक सिंचाई संभव नहीं था और नहरों पर खतरा मंडराता दिखने लगा था। डिजाइन क्षमता के अनुसार काचन परियोजना ४२ सौ हेक्टेयर क्षेत्रफल को सिंचित करती है।