वैसे तो अब शिव मंगल 14 दिनों की अवधि पूरी करने के कगार पर पहुंच गए हैं, लेकिन हैरत की बात यह है कि प्रवासियों को उनकी सुविधा के अनुसार घर में या शेल्टर होम में क्वारंटीन कराने की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारियों को शिवमंगल की समस्या नजर नहीं आई। जबकि अधिकारी आए दिन रमडिहा गांव पहुंच रहे हैं, लेकिन किसी ने भी शिवमंगल को शेल्टर होम में पहुंचाने की जरूरत नहीं समझी है। इधर शिवमंगल व उनके परिजन शेल्टर होम जैसी किसी व्यवस्था से अनजान हैं।
शिवमंगल के परिजनों के मुताबिक वह सूरत में एक साड़ी बनाने की फैक्ट्री में काम करता था। 10 हजार रुपए महीने में पगार पाने वाले शिवमंगल दो पगार ही उठा पाए थे कि लॉकडाउन के चलते कंपनी बंद हो गई। करीब डेढ़ महीने वहां सूरत में कमरे में गुजारने के बाद जब शिवमंगल के पास रुपए नहीं बचे तो उन्होंने घर वालों को सूचित किया। घर वालों ने कर्ज लेकर शिवमंगल को 5000 रुपए उसके बैंक खाते में डाला। सरकार की योजना से भी उसे एक हजार रुपए मिले। इसके बाद इन रुपयों की मदद से वह जैसे-तैसे घर पहुंचा।