जिले में संचालित सहकारी दुग्ध संघ की ओर से पूर्व में उत्पादन व कलेक्शन के लिए 47 दुग्ध समितियों का गठन किया गया था। वर्तमान में केवल 18 समितियां संचालित हैं। ज्यादातर समितियां चितरंगी की है। योजना के मुताबिक बाकी की समितियों को भी सक्रिय किया जाना था, लेकिन कवायद अधूरी रह गई है और एक हजार लीटर दुग्ध की आपूर्ति रीवा से करनी पड़ रही है।
दुग्ध की पैकिंग कर बिक्री करने वाले दुग्ध संघ को वर्तमान में हर रोज केवल 1800 लीटर दुग्ध प्राप्त हो रहा है। जबकि संघ की ओर से पर्याप्त दुग्ध उपलब्ध होने की उम्मीद में 10 हजार लीटर क्षमता का संयंत्र स्थापित किया गया है। दुग्ध उत्पादन की बड़ी मात्रा मवेशी पालकों द्वारा फेरी लगाकर खुद वितरित किया जाता है। पशुपालन विभाग के अधिकारियों की माने तो जिले में कुल 80 हजार लीटर दुग्ध उत्पादन है। करीब 50 हजार लीटर दुग्ध की बिक्री मवेशी पालकों द्वारा की जाती है, जबकि 30 हजार लीटर दुग्ध का उपयोग किसानों द्वारा कर लिया जाता है।
पशुपालन विभाग की गणना के मुताबिक जिले में मवेशियों की संख्या करीब ढाई लाख है। इसमें अकेले गौ वंश के मवेशियों की संख्या डेढ़ लाख से अधिक है। जिले में भैंस वंश की संख्या 60 हजार से अधिक की बताई गई है। बाकी संख्या बकरियों की है। बकरी पालन भी यहां बड़े स्तर पर किया जाता है। यह बात और है कि इन मवेशियों की नस्ल काफी सामान्य है। गौ वंश में शाहीवाल, हरियाणवी व गिर जैसी नस्ल वाली गायों की संख्या नहीं के बराबर हैं। जबकि भैंस में कुछ संख्या मुर्रा की है।
– जिले में मवेशियों में नस्ल सुधार किया जाएगा।
– किसानों को प्रेरित कर मॉडल डेयरी चलाएंगे।
– मवेशियों के इलाज की चिकित्सा व्यवस्था।
– डेयरी व्यवसाय को डीएमएफ से अनुदान मिलेगा। फैक्ट फाइल
2.5 लाख के करीब मवेशी
47 दुग्ध समितियों का गठन
18 दुग्ध समितियां हैं सक्रिय
80 हजार लीटर दुग्ध उत्पादन