बच्चों के डायरिया की चपेट में आने का यह नतीजा उस स्थिति में है, जब गांवों में दस्तक नियंत्रण पखवाड़ा चल रहा है। शासन के निर्देश पर घर-घर जाकर ओआरएस पैकेट व जिंक के टेबलेट बांटे जा रहे हैं। इसके बावजूद बच्चे डायरिया की चपेट में आ रहे हैं। अस्पताल के शिशु रोग विशेषज्ञों का इसको लेकर दलील है कि मौसम के बदलते तेवर और हवा में नमी वाले इस सीजन में डायरिया उल्टी-दस्त की संभावना अधिक होती है। खासतौर पर गर्मी के मौसम के बाद बारिश होने पर बच्चों में डायरिया का संक्रमण तेजी के साथ फैलता हे।
बेलवार गांव निवासी चंदन को अचानक उल्टी शुरू हुई। इलाज के लिए उसे जिला अस्पताल लाया गया।डाक्टरों ने उसे भर्ती किया। जगह के अभाव में उसका जमीन पर ही इलाज शुरू कर दिया गया।डक्टरों ने कहा कि शाम तक रूकना है यदि उल्टी नहीं हुई छुट्टी कर देंगे। बेलवार से चंदन महज एक उदाहरण हैं।वर्तमान में जिला अस्पताल में ज्यादातर बच्चे इसी तरह बीमारी की चपेट में आकर जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं।
चिकित्सक खुद इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि उल्टी-दस्त से पीडि़त भर्ती बच्चों का इलाज कम से कम पांच दिन तक होना चाहिए।लेकिन उन्हें अधिकतम तीन दिन में ही सुधार की स्थिति को देखते हुए अस्पताल से डिस्चार्ज करना पड़ रहा है। क्योंकि अस्पताल के वार्डों में जगह नहीं है। फर्श पर बच्चों को लिटाकर जैसे तैसे इलाज किया जा रहा है।
देखभाल करें परिजन
शिशु रोग विशेषज्ञों की परिजनों को सलाह है कि छोटे बच्चों को पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पानी पिलाएं। पानी पहले उबाल लें और फिर ठंडा करके पिलाएं।बासी व बाहर के खाद्य पदार्थों से तौबा करें। इस मौसम में खाद्य पदार्थों में संक्रमण की संभावना अधिक होती है। इसलिए घर में बना ताजा खाद्य पदार्थ ही बच्चों को खिलाया जाए। उल्टी-दस्त होने पर तत्काल चिकित्सक की सलाह दें और ओआरएस दें।