जिला अस्पताल का भवन काफी जर्जर हो गया है। जिला अस्पताल का शायद ही ऐसा कोई कमरा होगा जिसकी छत से पानी नहीं टपकता होगा। खासकर जहां मरीज भर्ती होते हैं वहां जगह-जगह पानी टपकता है। इस दौरान मरीज को इधर-उधर अपना बेड हटाने पड़ते हैं। जिससे वे भीगे बीस्तर में ही रात गुजारते हैं। ऐसे में उन्हें नए अस्पताल की जरूरत है, लेकिन मरीजों की परवाह सरकारी तंत्र को बिल्कुल नहीं हैं।
बारिश के सीजन में संक्रमण का खतरा मोल लेते हैं। हालात यह है हर तरह के मरीजों को सामान्य मरीजों के साथ रखा जाता है। डाक्टर बताते हैं कि खतरा तो है लेकिन मजबूरी भी है। जिसके कारण खतरा मोल लेना पड़ रहा है। अस्पताल में लाखों की दवाइयां भी रखी हुई हैं, जिस पर बारिश का पानी टपकता है। जिलेभर में स्वास्थ्य केन्द्रों में हालात इससे भी बदतर है। खासकर चितरंगी, देवसर में मरीजों को उपचार के लिए भटकना पड़ता है। यहां न तो समुचित बेड हैं और नहीं जरूरी दवाएं।
जिला अस्पताल में दो वार्ड हैं। ये केवल नाम मात्र के लिए पुरूष और महिला वार्ड बनाए गए हैं। हालात यह है कि पुरूष महिला मरीजों को एक साथ रखा जाता है। इसका वजह है कि जिला अस्पताल में जगह नहीं है। बेड खाली न होने की स्थिति में जमीन पर भर्ती होकर उपचार कराना पड़ता है। क्षमता से ज्यादा मरीज हो जाते हैं तो उनका उपचार भी ठीक से नहीं हो पाता।