VIDEO चाइना की रेडलेड किस्म को नकारा, अब चमकेगी अर्कासूर्या
काफी समय से किसानों के लिए खास बनी ताइवान की रेडलेडी पपीता किस्म पर अब स्वदेशी अर्कासूर्या भारी पड़ेगी। अर्कासूर्या कम मेहनत में अधिक उपज देने वाली किस्म है। खास बात यह है कि इसे बेंगलूरु में तैयार किया गया है। ऐसे मेंअब चाइना के बजाय स्वदेश पपीता की डिमांड बढ़ेगी।
महेश परबत की रिपोर्ट
सिरोही. जिले में अब किसानों का रुझान बागवानी खेती की ओर बढ़ रहा है। पपीते से अच्छा मुनाफा कमा रहे किसान नई किस्म खोज रहे हैं। काफी समय से किसानों के लिए खास बनी ताइवान की रेडलेडी पपीता किस्म पर अब स्वदेशी अर्कासूर्या भारी पड़ेगी। अर्कासूर्या कम मेहनत में अधिक उपज देने वाली किस्म है। खास बात यह है कि इसे बेंगलूरु में तैयार किया गया है। ऐसे मेंअब चाइना के बजाय स्वदेश पपीता की डिमांड बढ़ेगी।
जिला मुख्यालय के कृषि विज्ञान केन्द्र में बागवानी की डॉ. कामिनी पाराशर ने बताया कि यहां अर्कासूर्या के पौधों को ग्रीन पॉलीहाउस में तैयार किया जा रहा है।
नर पौधे का झंझट नहीं
रेडलेडी किस्म में अब पहले जैसी बात नहीं रही। कई स्थानों से इसके बीज से नर पेड़ तैयार होने की शिकायतें आ रही हैं। इसमें फल देने की क्षमता नहीं होती है। बड़े होने पर ही इसका पता चलने के कारण किसान की मेहनत बेकार हो जाती है लेकिन अर्कासूर्या में नर पौधे का झंझट नहीं होता। अरठवाड़ा, वीरवाड़ा आदि गांवों में अर्कासूर्या लगाया भी है।
डेढ़ साल बाद आमदनी शुरू
डेढ़ साल बाद अर्कासूर्या पर फल लगने शुरू हो जाते हैं, इसमें दो बार फल प्राप्त कर सकते हंै। यह भी रेडलेडी की तरह लाल एवं मीठा फल है। किसान गुजरात या अन्य स्थानों से इसके पौधे लाते हैं और बिना जांच के बीज तथा खाद भी डालते हैं, जो फसल के लिए नुकसानदायक साबित होता है। ऐसे में सरकारी नर्सरी से ही पौधे लेने चाहिए। पाराशर ने बताया कि यहां भी रेडलेडी के पौधे हैं, लेकिन किसानों को बेहतर कमाई के लिए अर्कासूर्या ठीक रहेगा।
२० रुपए का एक पौधा
नर्सरी में अर्कासूर्या किस्म के पौधे उपलब्ध हैं। इनके दाम २० रुपए प्रति पौधा हैं। यहां करीब २५ हजार पौधे तैयार किए जिनमें से मात्र एक हजार रहे है। यह काफी लोकप्रिय हो रहा है।
नोट: सर फोटो में जितेन्द्रसिंह बारड़ लिखे
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