scriptगोमाता की बेकद्री कब तक! | Gosalas condition worsened | Patrika News
सिरोही

गोमाता की बेकद्री कब तक!

गोशालाओं की हालत बदतर

सिरोहीJan 12, 2018 / 11:59 am

Bharat kumar prajapat

sirohi

sirohi

सिरोही से त्रिलोक शर्मा

सिरोही. राजस्थानएक मात्र राज्य है जिसने गो-कल्याण के लिए अलग मंत्रालय बनाया हुआ है और गोपालन राज्य मंत्री सिरोही से ही हैं। बावजूद इसके जिले की कई गोशालाओं की हालत बदतर होती जा रही है। वैसे शहर की अर्बुदा गोशाला में व्यवस्थाएं दुरुस्त की जा रही हैं। गोवंश संवर्धन एवं संरक्षण की सरकारी घोषणाओं के क्रियान्वयन की दिशा में सरकार को चेताया जा रहा है। पिछले दिनों सरकार ने प्रत्येक पंजीकृत गोशाला के बीमार पशुओं को उपचार के उद्देश्य सेे उप केन्द्र व पशु चिकित्सा अधिकारी से जोडऩे का प्रस्ताव लिया। विधायक कोष से एम्बुलेंस देने की बात कही। गोशालाओं के बीमार पशुओं की देख-रेख एवं बीमारी अन्य पशुओं को न लगे, इसके लिए अलग से बाड़े बनाने का भी निर्णय किया। चारा जलाने पर कानूनी रोक लगा चारा बैंक की स्थापना प्रत्येक जिले में करने का प्रस्ताव लिया। गो-संरक्षण और शोध के लिए गो-विज्ञान, कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना, गोवंश को राज्य धरोहर घोषित करने, गोपालकों की सहकारी समितियां बनाने को प्रोत्साहन आदि की घोषणाएं मूर्तरूप नहीं ले पाई हैं। आखिर क्यों ये प्रस्ताव घोषणा तक ही सीमित रह गए? क्या सरकार मंशा मात्र घोषणा कर वाहवाही लूटने की थी? क्यों अनुदान के लिए गोवंश की संख्या निर्धारित की गई? ये कुछ सवाल हैं जिनका जवाब जनता को चाहिए।
एक अनुदानित गोशाला को लेकर पशुपालन विभाग ने आनन-फानन में जांच करवा कोतवाली थाने में रिपोर्ट दी, लेकिन जांच में तथ्यों का कोई उल्लेख तक नहीं किया। ऐसे में पुलिस ने भी बिना तथ्यों के एफआईआर दर्ज नहीं की। जुलाई में अतिवृष्टि के दौरान गोशालाओं में सैकड़ों गोवंश की मौत हुई। इस पर भी प्रशासन के कान खड़े नहीं हुए। गोशाला के टैग लगी गायें कचरे में पॉलीथिन खाकर मौत के मुंह में जा रही हैं। क्या अंतर है उन बूचडख़ानों में जहां पर इन्हें एक झटके में मार दिया जाता है और यहां इन्हें भूखा, प्यासा, बीमार रखकर तड़पाकर मारा जाता है? गाय के लिए घर में पहली रोटी बनाते देखी, जिसका दूध पीकर हम बड़े हुए, जिसके घी को आज भी प्राथमिकता से खाते हैं, जिसका बछड़ा बैल के रूप में गरीब किसान का सबसे बड़ा साथी है। वह गाय जिसे हम आज गली-गली में पॉलीथिन खाकर मरते देखते हैं। वह गाय जिसे लोग सिर्फ दुहने के लिए दोनों वक्त घर में लाते हैं और बाद में खुला छोड़ देते हैं। जो भीड़ भरे चौराहों पर मजे से बैठी जुगाली करती है। कई दुपहिया सवारों के इनसे टकराकर हाथ-पैर टूट जाते हैं। कभी तो जान भी चली जाती है। आखिर आज इस गाय में ऐसा क्या दिखा कि अचानक राजनीति का प्रमुख तत्व बन गई?
एक तरफ तो सरकार गोरक्षा कानून मजबूत बना रही है। गोरक्षा के नाम पर उपकर भी लगाया। करोड़ों रुपए एकत्र हुए। ये कहां गए? कोई हिसाब नहीं। कई गोशालाओं में गोवंश बदतर हालात में है। गोवंश के पालन की वाहवाही लूटने वाली सरकार के नियम लंगड़े साबित हो रहे हैं। पशुपालन विभाग से पंजीकृत और 200 गायों के बाड़े वाली गोशाला को अनुदान का नियम छोटी उन गोशालाओं पर भारी पड़ रहा है जहां संख्या कम है। सिरोही जिले में ऐसी करीब ४० गोशालाएं अनुदान से वंचित हंै। गाय बेचारी, जिंदा है तो भी मुद्दा, मर गई तब और भी बड़ा मुद्दा है। गाय को लेकर राजनीति कहां तक उचित है?
गोवंश को लेकर जनमानस उद्वेलित है। गोभक्त सडक़ पर आएं उससे पहले सरकार को सकारात्मक कदम उठाने होंगे। वास्तव में गाय रक्षा के लिए ईमानदारी से प्रयास करने की आवश्यकता है, जिसमें कड़ा कानून बनाकर सख्ती से लागू करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाकर पहल की जा सकती है।

Home / Sirohi / गोमाता की बेकद्री कब तक!

loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो