scriptकवि और अभिनेता शैलेष लोढा बोले- मुम्बई में रोज आती है सिरोही की याद | Magazine's conversation with Tarak Mehta Fame Lodha | Patrika News
सिरोही

कवि और अभिनेता शैलेष लोढा बोले- मुम्बई में रोज आती है सिरोही की याद

तारक मेहता फेम लोढा से पत्रिका की बातचीत

सिरोहीOct 14, 2018 / 10:10 am

Bharat kumar prajapat

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सिरोही. तारक मेहता फेम कवि शैलेष लोढा का मानना है कि साल के 365 दिनों में से ऐसा कोई दिन नहीं जाता जिस दिन मेरे मुंह से सिरोही का जिक्र नहीं निकलता। मुम्बई में भी हर रोज सिरोही की याद आती है। लोढा ने शनिवार को सिरोही के एक होटल में पत्रिका से बातचीत की। लोढा पत्नी के साथ अजारी में सरस्वती मंदिर और जालोर जिले के सुंधामाता मंदिर में दर्शन करने के बाद मुम्बई जा रहे थे। इस दौरान कुछ समय के लिए सिरोही रुके। उन्होंने कहा कि सिरोही मेरा ननिहाल है और 1981 से 1989 तक मैंने यहां के सरकारी स्कूल और कॉलेज में पढ़ाई की। भले ही मेरा जन्म जोधपुर में हुआ लेकिन सिरोही ही मेरी कर्मभूमि है। मैं जितना जोधपुर से प्यार करता हूं, उतना ही सिरोही से। यहां आकर मुझे अलग ही सुकून मिलता है। मुझे यहां की माटी घर जैसी लगती है।
नहीं भूला गलियां और समोसे
जैसा कि लोढा बताते हैं कि पुलिस लाइन में हम एकाभिनय करने जाते थे। सातवीं में था जब पहली बार 30 सितम्बर को सुमेरपुर में कविता पढ़ी।
दोस्तों के साथ सरजावाव दरवाजे के बाहर रोजाना एक स्टॉल पर चाय पीने जाना और गपशप करना आज भी जेहन में है। यहां उकजी के समोसे और राज टॉकीज की यादें आज भी जेहन में हैं। हमने यहां खूब फिल्में देखीं। कमलेश चौधरी, कमलेश सिंघी, महेन्द्र, इलियास, नरेन्द्रसिंह सिंदल कई बचपन के दोस्त हंै जिनकी याद आती है।
कढ़ी और चूरमे का लड्डू भाया
कवि लोढा ने पत्नी के साथ यहां एक नामी होटल में दोपहर का भोजन किया। उन्होंने बताया कि जब भी यहां आते हैं तो भोजन या नाश्ता करते हैं। यहां का स्वाद लाजवाब है। उन्होंने आज कढ़ी, खिसिया, जाड़ी रोटी और चूरमे के लड्डू खाए। उन्होंने भोजन के बारे में योगेश माली और काकू की तारीफ भी की।
ग्यारह रुपए का इनाम
वर्ष 1988-89 के दौरान यहां गली-मोहल्लों में क्रिकेट प्रतियोगिताएं होती थीं। आपस में छह-आठ टीमें मिलकर प्रतियोगिता करवाई जाती थी और वह भी स्पिन गेंद से। उस समय खिताब जीतने वाली टीम को ग्यारह रुपए का पुरस्कार दिया जाता था।

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