नहीं भूला गलियां और समोसे
जैसा कि लोढा बताते हैं कि पुलिस लाइन में हम एकाभिनय करने जाते थे। सातवीं में था जब पहली बार 30 सितम्बर को सुमेरपुर में कविता पढ़ी।
दोस्तों के साथ सरजावाव दरवाजे के बाहर रोजाना एक स्टॉल पर चाय पीने जाना और गपशप करना आज भी जेहन में है। यहां उकजी के समोसे और राज टॉकीज की यादें आज भी जेहन में हैं। हमने यहां खूब फिल्में देखीं। कमलेश चौधरी, कमलेश सिंघी, महेन्द्र, इलियास, नरेन्द्रसिंह सिंदल कई बचपन के दोस्त हंै जिनकी याद आती है।
जैसा कि लोढा बताते हैं कि पुलिस लाइन में हम एकाभिनय करने जाते थे। सातवीं में था जब पहली बार 30 सितम्बर को सुमेरपुर में कविता पढ़ी।
दोस्तों के साथ सरजावाव दरवाजे के बाहर रोजाना एक स्टॉल पर चाय पीने जाना और गपशप करना आज भी जेहन में है। यहां उकजी के समोसे और राज टॉकीज की यादें आज भी जेहन में हैं। हमने यहां खूब फिल्में देखीं। कमलेश चौधरी, कमलेश सिंघी, महेन्द्र, इलियास, नरेन्द्रसिंह सिंदल कई बचपन के दोस्त हंै जिनकी याद आती है।
कढ़ी और चूरमे का लड्डू भाया
कवि लोढा ने पत्नी के साथ यहां एक नामी होटल में दोपहर का भोजन किया। उन्होंने बताया कि जब भी यहां आते हैं तो भोजन या नाश्ता करते हैं। यहां का स्वाद लाजवाब है। उन्होंने आज कढ़ी, खिसिया, जाड़ी रोटी और चूरमे के लड्डू खाए। उन्होंने भोजन के बारे में योगेश माली और काकू की तारीफ भी की।
कवि लोढा ने पत्नी के साथ यहां एक नामी होटल में दोपहर का भोजन किया। उन्होंने बताया कि जब भी यहां आते हैं तो भोजन या नाश्ता करते हैं। यहां का स्वाद लाजवाब है। उन्होंने आज कढ़ी, खिसिया, जाड़ी रोटी और चूरमे के लड्डू खाए। उन्होंने भोजन के बारे में योगेश माली और काकू की तारीफ भी की।
ग्यारह रुपए का इनाम
वर्ष 1988-89 के दौरान यहां गली-मोहल्लों में क्रिकेट प्रतियोगिताएं होती थीं। आपस में छह-आठ टीमें मिलकर प्रतियोगिता करवाई जाती थी और वह भी स्पिन गेंद से। उस समय खिताब जीतने वाली टीम को ग्यारह रुपए का पुरस्कार दिया जाता था।
वर्ष 1988-89 के दौरान यहां गली-मोहल्लों में क्रिकेट प्रतियोगिताएं होती थीं। आपस में छह-आठ टीमें मिलकर प्रतियोगिता करवाई जाती थी और वह भी स्पिन गेंद से। उस समय खिताब जीतने वाली टीम को ग्यारह रुपए का पुरस्कार दिया जाता था।