नेटवर्क की तलाश में धोरे का सहारा
मंडार. गांव-गांव तक विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाली केन्द्र और प्रदेश की सरकार का सच जिले के राहुआ में देखाई देता है। जहां मोबाइल और लेपटॉप तो लोगों के हाथों में आ गए हैं, लेकिन कनेक्टिविटी के लिए या तो ऊंचे धोरे (टीले) पर जाना पड़ता है या फिर किसी छत व पेड़ पर चढ़कर नेटवर्क को ढूंढऩा पड़ता है।
मंडार. गांव-गांव तक विकास के बड़े-बड़े दावे करने वाली केन्द्र और प्रदेश की सरकार का सच जिले के राहुआ में देखाई देता है। जहां मोबाइल और लेपटॉप तो लोगों के हाथों में आ गए हैं, लेकिन कनेक्टिविटी के लिए या तो ऊंचे धोरे (टीले) पर जाना पड़ता है या फिर किसी छत व पेड़ पर चढ़कर नेटवर्क को ढूंढऩा पड़ता है। गांव में किसी भ्ी कम्पनी का मोबाइल टावर नहीं है। ऐसे में तीन ओर पहाडिय़ों के बीच बसे रोहुआ के लोगों का तकनीकी युग भी संचार साधनों से सम्पर्क कटा हुआ है। ऐसे में गांव में पहुंचने के बाद मोबाइल एक खिलौना बनकर रह जाता है। वैसे कई लोग पहाड़ी, धोरे व पेड़ों पर चढ़कर नेटवर्क मिलने पर प्रसन्नता जाहिर करते हैं लेकिन सरकारी कर्मचारियों को विभागीय सूचनाओं के आदान-प्रदान में परेशानी झेलनी पड़ती है। यहां उप स्वास्थ्य केन्द्र में कार्यरत एएनएम को भी विभागीय रिपोर्ट भेजने के लिए धोरे पर जाना पड़ता है। एएनएम सायंती बिश्नोई ने बताया कि यहां मोबाइल नेटवर्क की समस्या है। विभाग की ओर से आने वाली सूचनाओं की वापस रिपोर्टिंग करने के लिए सारे रेकर्ड साथ में लेकर बिजली धोरा आना पड़ता है। बिजली घर के मुख्य द्वार पर एक पिल्लर पर रेकर्ड के साथ बैठकर सारी सूचनाएं मोबाइल पर रेवदर सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर देनी पड़ती है।
गांव में प्रवेश करते ही नेटवर्क गायब
क्षेत्र में रोहुआ कृषि में अग्रणी है और प्राकृतिक छटाओं से अटा है। गांव तीन ओर से पहाड़ी से घिरा है। लेकिन वर्तमान समय की सबसे महत्वपूर्ण सुविधा से दूर है। बिजली धोरा से वरमाण की ओर आने पर मोबाइल नेटवर्क कनेक्ट हो जाता है, लेकिन गांव में प्रवेश करते ही नेटवर्क गायब हो जाता है। ऐसे में वाट्सएप, फेसबुक तो दूर किसी से बात भी नहीं हो पाती है।
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