नगरीय विकास कर से आय 6.60 लाख
भवन निर्माण अनुमति से आय 40 लाख
साइन विज्ञापन बोर्ड से आय 5 लाख (वैसे तो परिषद का बजट करोड़ों में है पर यह आय कर व शुल्क से है)
कालका की सड़क पर रोडलाइट
गौरव पथ तीन बत्ती से भाटकड़ा तक
कई जगह हाइमास्ट लाइट लगाई नवाचार की उपलब्धि और हकीकत
01. डोर टू डोर कचरा संग्रहण – इस बोर्ड में सिरोही के सभी वार्ड में डोर टू डोर कचरा संग्रहण लागू हुआ है।
हालात- प्रतिदिन हर घर से कचरा नहीं उठता। कई मोहल्लों में कचरे के ढेर इसकी निशानी हैं। इस बार स्वच्छता सर्वे में इसका परीक्षण होगा।
02. अम्बेडकर भवन व रैनबसेरा- परिषद की ओर से गोयली चौराहे पर अम्बेडकर भवन तथा कांजी हाउस के पास रैनबसेरे का निर्माण करवाया गया। हालांकि इसमें वर्तमान विधायक का भी काफी सहयोग रहा।
हालात – रैनबसेरे के आस-पास कॉलोनी है। इसलिए इसका यहां कोई औचित्य नहीं है। अम्बेडकर भवन भी हाइवे से सटता बनाया है।
03 गोशाला बनाई- यहां प्रशासन की ओर से पुरानी अर्बुदा गोशाला तो खुलवा दी गई, लेकिन इसकी नियमित देखरेख तथा यहां काम करने वालों को समय पर वेतन नहीं मिलता है।
हकीकत- गोशाला शुरू करने के बाद भी शहर में गोवंश की समस्या का समाधान नहीं हुआ है। आए दिन सड़कों पर खड़े पशुओं के कारण दुर्घटना का अंदेशा बना रहता है।
सम्पूर्ण शहर अतिक्रमण की चपेट में है। जगह-जगह अवैध निर्माण हो रहे हैं। इन्हें हटाने की मात्र बातें हुईं। काम बहुत कम हुआ।
यहां जगह-जगह शौचालयों का निर्माण तो करवा दिया गया, लेकिन उनका नियमित उपयोग अब तक सुनिश्चित नहीं हो पाया है।
जगह जगह सीसीटीवी कैमरें लगाए, लेकिन अब भी कई स्थानों पर बंद पड़े हैं।
कई सड़कों और चौराहों का नामकरण किया लेकिन इनमें राजनीति होने पर मौके पर कोई काम नहीं हो पाया।
पैलेस रोड तथा सदर बाजार में वेंडर जोन का निर्धारण किया लेकिन राजनीति के कारण काम मूर्तरूप नहीं ले पाया।
शहर में सोडियम लाइट के स्थान पर एलइडी लाइट लगाई गई। इससे परिषद को प्रतिमाह एक-दो लाख की बचत हुई है।
मॉडर्न टॉयलेट शहर के सार्वजनिक चिकित्सालय में बनाया जो उपलब्धि है। हालात- शहर के ज्यादातर क्षेत्र में सड़क का काम अभी बाकी है। सफाई का कार्य भी समय पर नहीं होता है।
हकीकत – शहर में आज भी आए दिन नालियां अवरुद्ध होती हंै। शहरी सड़कें तलैया बनती हैं। बारिश के दिनों में हालात ज्यादा खराब होते हैं। कई बाहरी बस्तियां नालियों की सुविधा से महरूम हैं।
01. ड्रेनेज सिस्टम- पिछले 3 दशक से ड्रेनेज की समस्या यथावत है। हर बार ड्रेनेज सिस्टम की घोषणा तो होती है, लेकिन कागजों में है। इससे बारिश में कई बस्तियां जलमग्न हो जाती हंै। हालांकि अब अधिकारियों ने बताया कि दिसम्बर में इसका काम शुरू हो जाएगा।
02. कच्ची बस्ती- शहर में दर्जनभर से ज्यादा कच्ची बस्तियां हैं। आकलन के अनुसार एक तिहाई शहर कच्ची बस्तियों में रहता है। इस बोर्ड में इनके लिए कोई काम नहीं हुआ। पांच साल में एक भी पट्टा कच्ची बस्तियों के नियमन के लिए नहीं दिया गया।
03. ट्रैफिक:- बढ़ता यातायात दबाव शहर की प्रमुख समस्या बन गई है। उसके लिए शहरी सरकार कुछ भी नहीं कर पाई। वैकल्पिक के लिए भी कुछ प्लान नहीं बनाया। कॉम्पलेक्स निर्माण के दौरान पार्किंग की व्यवस्था तो की गई, लेकिन यहां वाहन सड़क किनारे पार्क होते हंै।
04. पारम्परिक जलस्रोत- कई ऐसे पारम्परिक जलस्रोत हैं जिनके संवद्र्धन में नगर परिषद का यह बोर्ड कुछ कमाल नहीं कर पाया। यहां जरूर बावड़ी तथा तालाबों में मरम्मत करवाई गई थी। पुरानी धरोहरों को रंग रोगन जरूर किया। अखेलाव तथा लाखेराव तालाब के लिए कोई कागजी काम भी नहीं हुए।
05. ऑनलाइन सिस्टम- यहां पूरा सिस्टम ऑनलाइन करना था, लेकिन यहां मात्र जन्म तथा मृत्यु प्रमाण पत्र का ऑनलाइन काम होता है। ऐसे में परिषद को पारदर्शी और विश्वनीय बनाने की यह योजना भी विफल साबित हुई।
06. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट- वेस्ट टू एनर्जी एक बड़ा प्रोजेक्ट था जो इस बोर्ड की बड़ी उपलब्धि गिनी जा सकती थी लेकिन इस पर ज्यादा काम नहीं हो पाया। प्रतिदिन 10 टन कचरा सिर्फ डम्प किया जा रहा है। यदि यह प्रोजेक्ट शुरू होता तो न सिर्फ प्रदूषण की समस्या मिटती बल्कि परिषद को हर माह लाखों की आय भी शुरू होती।