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सिरोही

कोरोना काल में ही नहीं सौ साल पहले भी माउंट में किया जाता था लोगों को क्वारेंटीन

बि्रटिश हुकूमत में बीमार लोगों को शहर में घुसने की नहीं थी अनुमति
बीमार लोगों को शहर के बाहर क्वारेंटीन सेंटर में किया जाता था शिफ्ट

सिरोहीJun 29, 2022 / 04:02 pm

MAHENDRA SINGH VAGHELA

कोरोना काल में ही नहीं सौ साल पहले भी माउंट में किया जाता था लोगों को क्वारेंटीन

कोरोना काल में ही नहीं सौ साल पहले भी माउंट में किया जाता था लोगों को क्वारेंटीन

हरिपाल सिंह

माउंट आबू. वर्ष-2019 में वैश्विक महामारी कोरोना आने पर देशभर में अलग-अलग स्थानों पर सरकार ने क्वारेंटीन सेंटर खोले और लोग कोरोना व क्वारेंटीन के नाम से खौफ खाने लग गए। इससे पूर्व अधिकतर लोगों को क्वारेंटीन शब्द की जानकारी तक नहीं थी, पर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू में बि्रटिश हुकूमत में भी क्वारेंटीन सेंटर बनाया गया था। जिस भवन में सौ साल पहले क्वारेंटीन सेन्टर बनाया गया था, वह भवन आज भी मौजूद है। अनदेखी के कारण दुर्दशा के शिकार इस भवन को लेकर हाल ही में हुई पालिका बोर्ड की बैठक में जर्जरहाल इस भवन की मरम्मत करवाकर अन्य विभाग को कुछ समय के लिए किराए पर आवंटित करने का निर्णय लिया गया था। शहर से बाहर व टोल नाके से महज दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित इस क्वारेंटीन सेंटर में अंग्रेजों के शासन काल में शहर के बीमार लोगों व बाहर से आने वाले बीमार लोगों को रखा जाता था। इतना ही नहीं गर्मियों के दिनों में बि्रटिश अधिकारियों की कचहरी माउंट आबू में ही लगती थी। ऐसे में इनसे मिलने आने वाले लोगों को शहर में प्रवेश देने से पूर्व उन्हें यहां कुछ दिन के लिए क्वारेंटीन किया जाता था। ऐसे में स्वस्थ होने के बाद ही उन्हें शहर में प्रवेश की अनुमति होती थी।

ब्रिटिश शासन में अंग्रेजों को था माउंट आबू से खास लगाव

सिरोही जिले में स्थित माउंट आबू राजस्थान का एक मात्र पर्वतीय पर्यटन स्थल है। चूंकि अंग्रेंजों को पहाड़ों व ठंडी आबोहवा वाले इस हिल स्टेशन से काफी लगाव था। इसलिए यहां ब्रिटिश शासनकाल की कई निशानियां मौजूद हैं। राजस्थान का राजभवन आज भी गर्मियों में यहां शिफ्ट हो जाता है। जहां राज्यपाल कई दिनों तक ग्रीष्मकालीन प्रवास पर यहां रहते हुए कार्य करते हैं। इन निशानियों में से एक क्वारंटीन सेंटर भी है। माउंट आबू के प्रवेश द्वार पर ही एक कोने में यह क्वारेंटीन सेंटर बना हुआ है। यानी मुख्य शहर से बाहर की तरफ। जानकर बताते है कि इसका निर्माण अंग्रेजों ने सन् 1900 के आस-पास कराया था। यहां के स्थानीय निवासी व पार्षद सुनील आचार्य बताते हैं कि यहां टीबी, चेचक, प्लेग आदि के रोगियों को अंग्रेजों द्वारा रखा जाता था। इसे क्वारेंटीन सेंटर कहते थे, क्योंकि इन बीमारियों के रोगियों को परिवार से अलग रखने की जरूरत होती थी। माउंट आबू के सभी पुराने लोग इसके बारे में जानते हैं। वे बताते हैं कि यहां पास ही नाला है। जिसे यहां की स्थानीय भाषा में Òक्वारेंटीन का धराÓ कहते है।
आजादी के बाद अलग-अलग तरह से हुआ इसका उपयोग

देश की आजादी के बाद इस भवन का उपयोग औषधालय, स्कूल आदि के लिए भी हुआ। नेहरू युवा केन्द्र के कुछ ग्रीष्मकालीन शिविर भी यहां लगते रहे। अबकी बार कोरोना के मामले में क्वारेंटीन की चर्चा के साथ ही यह भवन भी लोगों व प्रशासन को यकायक याद आ गया। पर, इसकी काफी खस्ता हालत होने से उपयोगी साबित नहीं हुआ। हालांकि, अब नगर पालिका द्वारा इसे तैयार करवाया जा रहा है। साथ ही सीआईडी विभाग का कार्यालय संचालित करने की तैयारी भी है।
इनका कहना है ….

गत 18 अप्रेल को हुई बोर्ड की बैठक में इस जर्जर क्वारेंटीन सेंटर भवन की मरम्मत करवाने का निर्णय लिया गया था। उसी के अनुरूप नगर पालिका द्वारा तैयार करवाया जा रहा है।
– नाथाराम, एसआई, पालिका, माउंट आबू

अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इस क्वारेंटीन सेंटर भवन को बोर्ड की बैठक में तैयार करवाने व सीआईडी विभाग को किराए पर देने का निर्णय लिया गया था। पालिका की सम्पत्ति है। अब इसे किराए पर दिया जाएगा।
– जीतू राणा, अध्यक्ष, नगरपालिका, माउंट आबू

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