पुलिस ने बताया कि फैक्ट्री से हर महीने करीब 10 से 12 ट्रक नकली जीरा मंडियों में भेजा जाता था। ...और ऐसे करते हैं कारोबार
पुलिस की प्रारम्भिक जांच में खुलासा हुआ कि नकली जीरा की खेप गुजरात के ऊंझा व नडिय़ाद की जीरा मंडियों में भेजी जाती थी। कार्रवाई के दौरान भी यहां से दो ट्रक ऊंझा मंडी जाने के लिए तैयार खड़े थे लेकिन उससे पहले ही पुलिस ने पकड़ लिए। जीरा मंडियों में असली व नकली जीरे को मिक्स करके धड़ेल्ले से बेचा जाता है।
नकली जीरे को मंडियों में भेजने के लिए फर्जी बिल्टियां तैयार की जाती है। पुलिस ने बताया कि आबूरोड की एमके ट्रांसपोर्ट से फर्जी बिल्टी बनाकर ट्रक ऊंझा व नडिय़ाद मंडी के लिए भेजे जाते थे।
पुलिस की सूचना के बाद फूड सैफ्टी ऑफिसर विनोद कुमार व बाबूलाल गुर्जर मौके पर पहुंचे। उन्होंने नकली जीरे व जीरा बनाने में उपयोग लिए जाने वाले केमिकल्स का भी सैम्पल लिया।
नकली जीरा बनाने के कारखाना मालिक संजय गुप्ता ने खेत के मालिक भीमाना के पूर्व सरपंच हरिसिंह देवड़ा से करीब एक साल पहले पशु आहार बनाने के लिए कारखाना लगाने के लिए 50 हजार रुपए वार्षिक किराया पर लिया था। लेकिन खेत मालिक व आसपास रह रहे लोगों को कानों-कान खबर तक नहीं होने दी। बाहरी राज्य के मजदूरो के मार्फत सालभर से यह कार्य चल रहा था।
उत्तरप्रदेश में नहरों के किनारे खरपतवार के रूप में दूब जैसी जंगली घास को बोरों में भर कर भीमाना स्थित कारखाना में लाते हैं। यहां पर उस घास मशीनों से बारीक रूप में काटा कर भूसे पर गुड़ का घोल डाला जाता है। यह घास थोड़ी फूल जाती है। जिसके बाद में सफेद रासायनिक पाउडर में मिला कर मसला जाता है। हल्का सा हरा रंग देने के लिए उसमें रासायनिक रंग भी मिलाया जाता है। फिर उसे धूप में सूखा कर एक-दो दिन बाद छलनी से छान लिया जाता है। जो हुबहू जीरे की शक्ल में होता है और वजन भी उतना ही होता है। इसके लिए घटिया किस्म के गुड़ का घोल, पशु आहार, पत्थर पाउडर व केमिकल काम में लेते हैं। ऐसे में ये जीरा देखने पर असली जैसा ही नजर आता है। उसके बाद बोरों में भरकर ट्रकों से गुजरात भेजा जाता है।
नकली जीरा बनाने के काम में उत्तरप्रदेश के ही 12 श्रमिकों को काम पर रखा हुआ था। इन श्रमिकों से भी बंधुआ मजदूरों की तरह काम करवाना सामने आया है। पुलिस पूछताछ में श्रमिकों ने बताया कि उनसे रात-दिन काम करवाया जाता है। साथ ही नकली जीरा तैयार करने से लेकर ट्रक में लादान करने के लिए प्रति टन 250 रुपए सामूहिक मजदूरी दी जाती है।
-कल्याणमल मीणा, एसपी, सिरोही