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SIROHI विश्व गौरैया दिवस पर विशेष : अस्तित्व पर संकट: लुप्त होते नन्हे इंसानी दोस्त को संरक्षण की दरकार

सिरोही. आज विश्व गौरैया दिवस है। 2010 में 20 मार्च को पहली बार गौरैया दिवस मनाया गया था। चहचहाट से घरों का सन्नाटा तोडऩे वाली नन्हीं गौरैया अब कम दिखाई देती हैं।

सिरोहीMar 20, 2019 / 01:48 pm

Bharat kumar prajapat

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सिरोही. आज विश्व गौरैया दिवस है। 2010 में 20 मार्च को पहली बार गौरैया दिवस मनाया गया था। चहचहाट से घरों का सन्नाटा तोडऩे वाली नन्हीं गौरैया अब कम दिखाई देती हैं। इस सुंदर पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा था और बच्चे इसे देख बड़े होते थे। गौरैया के अस्तित्व पर छाए संकट ने इसकी संख्या बहुत कम कर दी है और कहीं-कहीं तो अब यह दिखाई ही नहीं देती। पहले यह चिडिय़ा जब बच्चों को चुग्गा खिलाती थी तो इंसानी बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। जानकारों के मुताबिक गौरैया की आबादी में 70 से 8 0 फीसदी तक की कमी आई है। यदि इनके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए तो हो सकता है कि गौरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढिय़ों को यह देखने को ही नहीं मिले।
कम होने के कारण
ग्रामीण और शहरी इलाकों में बाग-बगीचे खत्म हो रहे हैं। गगन चुंबी इमारतें और संचार क्रांति नासूर बन गई। बढ़ती आबादी के कारण जंगल साफ हो रहे हंै। ग्रामीण इलाकों में पेड़ काटे जा रहे हैं। खेती में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग बढ़ रहा है। शहर से लेकर गांवों तक मोबाइल टावर एवं उससे निकलते रेडिएशन से गौरैया की जिंदगी संकट में है। सीलिंग फैन आने के बाद गौरैया का तेजी से खात्मा हुआ है। लोगों का कहना है कि उनके घर में गौरैया पंखे से कटी हैं। फैक्ट्रियों का जहरीला धुआं गौरैया की जिंदगी के लिए सबसे बड़ा खतरा बना है। कार्बन उगलते वाहनों से प्रदूषण फैल रहा है। तापमान में लगातार बढ़ोतरी भी गौरैया को हमारे बीच से कम कर रही है।
झुंड में ही रहती हैं
गौरैया की लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर तथा वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है। एक समय में कम से कम तीन अण्डे देती है। गौरैया अधिकतर झुंड में ही रहती हैं। भोजन तलाशने के लिए एक झुंड अधिकतर दो मील की दूरी तय करता है। गौरैया घास के बीजों को भोजन के रूप में अधिक पसंद करती है। यह पक्षी अधिक तापमान में नहीं रह सकता है। 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया था।
कैसे बचाएं
समय रहते इन विलुप्त होती प्रजाति पर ध्यान नहीं दिया गया तो वह दिन दूर नहीं जब गिद्धों की तरह गौरैया भी इतिहास बन जाएगी और यह सिर्फ इंटरनेट और किताबों में ही दिखेगी। इंसानी दोस्त गौरैया को बचाने के लिए हमें आने वाली पीढ़ी को बताना होगा कि यह मानवीय जीवन और पर्यावरण के लिए क्या अहमियत रखती है। हम गर्मी में घरों-पेड़ों पर परीण्डे और घोंसलों की व्यवस्था कर सकते हैं। घर की छत पर एक बर्तन में पानी भरकर भी रख सकते हैं। छतों और पार्कों में अनाज रखें। छतों पर घोंसला बनाने के लिए कुछ जगह छोड़ें और उनके घोंसलों को नष्ट नहीं करें। मिट्टी के घोंसले भी पेड़ या घरों में बांध सकते हैं।
गौरैया की घटती संख्या के लिए मानव ही जिम्मेदार है। घरों से रोशनदान खत्म हो गए। हैं भी तो उन पर जाली लगी है। ऐसे में इन्हें घोंसला बनाने की जगह नहीं मिलती। जाली पर घोंसला बना भी लें तो अण्डे गिर जाते हैं। सिरोही में पीएफए और केसुभाई चेरिटेबल ट्रस्ट परीण्डे और चुग्गा पात्र लगा रहे हैं। आम जन भी इस पुण्य कार्य में आगे आए।
प्रवीणसिंह सिंदल, वन विभाग से सेवानिवृत्त, सिरोही
घर में आना सुख
गौरैया का घर में आना सुख, समृद्धि का संकेत है और यदि घर में घोंसला बनाकर निवास करती है तो संकट नहीं आता है। घर में सदैव मांगलिक व शुभ कार्य होते हैं।
आचार्य प्रदीप दवे, ज्योतिषि एवं वास्तुविद, सिरोही

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