पूछताछ में करीब-करीब यही बताया जाता है कि साÓब फलां शहर या कस्बे से लोड की थी और गुजरात में फलां जगह पहुंचानी थी। मसलन शराब लोड करवाने वाले असली तस्कर का वे सही नाम-पता तक नहीं बताते। फिर, गुजरात में जिस जगह जिसे पहुंचानी होती है, उसका भी सही नाम-पता कभी सामने नहीं आया। करीब सात-आठ साल पहले शराब की बड़ी खेप पकडऩे वाले आबूरोड सदर थाने के तत्कालीन सीआई से यही प्रश्न किया गया तो उन्होंने यही बताया था कि कई बार चालक या खलासी ने दिए पते पर पुलिस गई, पर वहां न तो वह जगह मिली और न ही उस नाम वाला व्यक्ति। अमूमन चंडीगढ़ या दिल्ली या फिर हरियाणा-पंजाब के और किसी बड़े शहर के नाम-पते दिए जाते हैं। कमोबेश यही हाल बूटलेगर्स का है। चालक-खलासी बता देते हैं कि उन्हें तो फलां जगह पहुंचने को कहा था। वहां पहुंचने पर सामने वाला मसलन बूटलेगर अपने आप तुमसे कॉन्टेक्ट कर देगा और माल जहां पहुंचाना है वहां का पता बता देगा। मतलब ये सारी बे सिर-पैर की बातें हैं। असली बात है शराब तस्करी के नेटवर्क का सुराग नहीं लगा पाना। यदि पुलिस चाहे तो आसमां से तारे जमीं पर उतार सकती है। शराब की खेप पकड़ी जाने पर पुलिस इतना स्टेटमेन्ट जरूर देती है कि शराब तस्करी के नेटवर्क का सुराग लगाने का प्रयास किया जा रहा है। फिर बात आई-गई हो जाती है।
सिरोही से तस्करी की शराब गुजरात पहुंचाने के लिए सिरोही-पिण्डवाड़ा-सरूपगंज-आबूरोड, सिरोही-रेवदर-मंडार-गुजरात बॉर्डर, आबूरोड-मावल-गुजरात बॉर्डर, आबूरोड-छापरी-अम्बाजी (गुजरात), आबूरोड-निचलागढ़-दानवाव से खेड़ब्रह्मा (गुजरात) व अम्बाजी (गुजरात), मंडार-डीसा-पालनपुर-मेहसाना-कलोल-अहमदाबाद, भटाना-ईकबालगढ़-पालनपुर होते हुए अहमदाबाद प्रमुख रूट है। इन रूटों पर सिरोही कोतवाली, पिण्डवाड़ा, सरूपगंज, रोहिड़ा, आबूरोड सदर, आबूरोड शहर, आबूरोड रीको, अनादरा, रेवदर, मंडार थाना तथा मावल, छापरी, निचलागढ़ व भटाना चौकी स्थित है। खास तौर पर मंडार, आबूरोड सदर, आबूरोड रीको थाने के साथ छापरी, मावल व भटाना पुलिस चौकी पर पोस्टिंग के लिए पुलिसकर्मियों को कई पापड़ बेलने पड़ते हैं।