इसका अंजादा रामसकल को खुद भी नहीं था कि वह अब उच्च सदन के हिस्सा होंगे। दरअसल, राबट्र्सगंज संसदीय सीट से तीन बार सांसद रह चुके हैं और मिर्जापुर-सोनभद्र की राजनीति में सक्रिय हैं। इनका नाम १8 मई को एक बार फिर तब चर्चा में आया जब एक वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो में वह मिर्जापुर कोतवाली के पुलिसकर्मियों को देख लेने की धमकी नजर आए। कोल जाति के रामसकल को भाजपा पूर्वी उत्तर प्रदेश में दलित चेहरे के तौर पर प्रोजक्ट करना चाहती है।
पूर्वांचल की सियासत में दलितों की अहम भूमिका भाजपा के लिए सबसे मुफीद वेस्ट यूपी है, जहां हिंदू कार्ड काम कर जाता है, लेकिन पूर्वांचल इससे इतर है। यह जातीय बेडिय़ों में बुरी तरह जकड़ा हुआ है। दो पचुनावों में जिस तरह भाजपा को करारी हार मिली, उससे पार्टी को सपा-बसपा गठबंधन से डर लगने लगा। पूर्वांचल में दलित अब भी मायावती के कैडर वोटर माने जाते हैं। भाजपा इसी वोट में बिखराव चाहती है। इसलिए उसने रामसकल को आगे किया, ताकि लोगों तक आसानी से बात पहुंचाई जा सके कि वह ही असली दलित हितैषी है।
साथ ही यह घोषणा 14 जुलाई को इसलिए भी की गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ठीक एक दिन बाद 15 जुलाई को मिर्जापुर में रहेंगे, जहां की राजनीति में रामसकल सक्रिय हैं। रामसकल पूर्वांचल में एक मात्र बीजेपी के दलित चेहरे हैं, जो तीन बार सांसद रहे।
कम है कोल जाति की आबादी
कोल जाति की आबादी यूपी में बहुत कम है। अनुसूचित जनजाति में कोल आते हैं। मिर्जापुर-सोनभद्र सीट पर इनका अच्छा प्रभाव है। करीब पांच लाख के आसपास कोल वोटर हैं। पूरे यूपी की बात करें तो यह आंकड़ा 10 लाख के आसपास है।
पत्रिका के सवालों पर रामसकल ने यह कहा
दरअसल, जब रामसकल से पत्रिका ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि सुबह 9 बजे गृहमंत्रालय से फोन आया और बॉयोडाटा मांगा गया। बकौल रामसकल, मुझे लगा कि कोई गंभीर बात होगी। इसलिए बॉयोडाटा भेज दिया। थोड़ी देर बाद मुझे बताया गया कि आप राज्यसभा के सदस्य नामित होंगे। रामसकल ने कहा कि वह पिछड़े क्षेत्र सोनभद्र से आते हैं, ऐसे में अब उच्च सदन में दलितों की आवाज उठाएंगे।
अति पिछड़े क्षेत्र से आते हैं
रामसकल मूलत: सोनभद्र जिले के चोपन विकासखंड के शिल्पी गांव के रहने वाले हैं। पहली बार 1996 में वे सांसद बने। इसके बाद 1998 व फिर 1999 में चुने गए।