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प्रेम, बेरूखी, दर्द और सही रास्ते को मंच पर सजीवता से उतारते कलाकार

थिएटर फेस्टिवल के तहत मंगलवार को खेले गए तीन बड़े नाटक, अलग-अलग विषय वस्तुओं को कलाकारों ने अनोखे अंदाज में मंच पर उतारा, इवेंट से 95 एफएम तड़का वॉयस ऑफ द फेस्टिवल के रूप में जुड़ा हुआ है

जयपुरDec 19, 2018 / 03:00 pm

Anurag Trivedi

anoop soni

प्रेम, बेरूखी, दर्द और सही रास्ते को मंच पर सजीवता से उतारते कलाकार

जयपुर। थ्री एम डॉट बैंड की ओर से आयोजित थिएटर फेस्टिवल ‘जयरंगम’ में मंगलवार को तीन बड़े नाटक जवाहर कला केन्द्र में खेले गए। फेस्ट के चौथे दिन ‘द अन एक्सपेक्टेड मैन’, ‘कोमल गांधार’ और ‘बालीगंज 1990’ की दमदार प्रस्तुति हुई। समारोह का पहला नाटक अंग्रेजी भाषा के सोलो एक्ट प्ले ‘द अनएक्सपेक्टेड मैन’ के रूप में खेला गया। बॉलीवुड की जानीमानी अदाकार सादिया सिद्दकी द्वारा प्रोड्यूस इस नाटक को पद्मा दामोदरन ने निर्देशित किया। इस नाटक की विषय वस्तु परिपक्व रोमांस पर आधारित थी। इसमें दिखाया गया कि एक स्त्री-पुरूष रात के समय एक ट्रेन में पेरिस से फ्रें कफ र्ट की यात्रा कर रहे हैं।
दोनों एक दूसरे से अनभिज्ञ हैं और उनकी दुनिया बिलकुल अलग-अलग है। आदमी एक लेखक है, जिसका लोगों से मोहभंग हो गया है और दूसरी तरफ वह औरत लेखक की किताब पढ़कर जीवन में खुशी, उद्देश्य और अर्थ ढूंढ रही है। नाटक विपरीत परिस्थतियों में जी रहे इन दोनों लोगों के विचारों के बीच सम्बन्ध ढूंढने का प्रयास करती है। नाटक हमारे आस-पास रह रहे मौन लेकिन अधिक मुखर विचार रखने वालों की अभिव्यक्ति है, जिसे अभिनेत्री पद्मा दामोदरन और यास्मीन रजा ने बेहतर अंदाज में प्रस्तुत किया।
जयपुर रंगमंच की अनुभवी टीम
शाम को 4 बजे केंद्र के रंगायन सभागार में तमाशा कलाकार दिलीप भट्ट के निर्देशन में महाभारत की कथा पर आधारित डॉ. शंकर शेष लिखित नाटक ‘कोमल गांधार’ का मंचन किया गया। इसमें कलाकारों के सजीव अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। नाटक में गांधारी के जीवन के उन पहलूओं को सामने लाया गया, जिसके कारण महाभारत का युद्ध हुआ। नाटक में दिखाया गया कि किस तरह भीष्म पितामह ने छल पूर्वक गांधारी का विवाह अंधे धृतराष्ट्र से करवाया और गांधारी ने प्रतिशोध के लिए अपने आंखों पर पट्टी बांध ली। मां-बाप की परवरिश से दूर रहकर कौरव गलत रास्ते पर निकलते हैं और परिणाम युद्ध के रूप में निकलता है। गांधारी के किरदार में प्रियदर्शनी मिश्रा, भीष्म के रूप में जफर खान, धृतराष्ट्र बने शिव देवंदा ने अपनी भूमिका से खासी चर्चा बटोरी।नाटक में इनके साथ अभिषक झांकल, अनिल मारवाड़ी और मनोज स्वामी जैसे अनुभवी कलाकारों की टीम नजर आई।
अनूप सोनी और निष्ठा का दमदार अंदाज
शाम को केंद्र के मध्यवर्ती में अतुल सत्य कौशिक के निर्देशन में नाटक ‘बालीगंज 1990’ का मंचन किया गया। संगीत मय कॉमेडी और व्यंग्यों से सराबोर इस नाटक ने दर्शकों का जमकर मनोरंजन किया। नब्बे मिनट का यह एक रहस्यात्मक नाटक था, जो वर्ष 1990 में कोलकाता के लोकप्रिय शहर बालीगंज में घटी एक घटना पर आधारित है। कार्तिक और वासुकी 10 साल से अधिक समय से एक खुशनुमा रिश्ते में थे। कार्तिक अपने सपनों को पूरा करने की दौड़ में मुंबई चला गया। वासुकी की शादी मशहूर पेंटर बिनॉय दास से हो चुकी है और अब वासुकी पछतावों से भरी एक दुखी जिंदगी जी रही है, जिसके लिए वह कार्तिक और उनके नाकाम रिश्ते को जिम्मेदार मानती है। एक दिन वह दुर्गा पूजा के मौके पर अपने मेंशन पर कार्तिक को कॉफ ी पर बुलाती है। कार्तिक, वासुकी की आंखों में वही दस साल पुराना प्यार देख कर आश्चर्य में है, और खुश भी। वहीं, दूसरी ओर वासुकी, कार्तिक की आंखों में वही बेरूखी देखकर परेशान और दुखी है। एक सुनिश्चित योजना के तहत दोनों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। इस नाटक की कहानी को बयां करने वाले एक्टर अनूप सोनी और निष्ठा पालीवाल तोमर रहे।

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