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लड़ रही हैं, बढ़ रही हैं, फिर भी डर रही हैं देश की बेटियां

आजादी की लड़ाई में देश की बेटी भी अपनी आजादी के सपने देखती थी। कभी क्रांतिकारियों की मदद कर, कभी लड़ाई में शामिल होकर। आज की बदलती तस्वीर पर एक नजर

Aug 11, 2017 / 08:15 pm

Ekktta Sinha

 मेधाविनी मोहन
आजादी के पहले देश की बेटी कई कुरीतियों का शिकार थी। सती प्रथा, जौहर प्रथा, देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियां अब न के बराबर हैं। हां, पर्दा प्रथा से अभी उसे पूरी मुक्ति नहीं मिल पाई है और ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी बाल-विवाह होते हैं। दहेज पर कानूनी प्रतिबन्ध लगा कर दहेज मांगने वालों व उसके नाम पर उत्पीडऩ करने वालों के लिए कठोर दंड की व्यवस्था की गई। लेकिन दहेज प्रथा अभी भी बेटी की जान की दुश्मन बनी हुई है, हालांकि ऐसे उदाहरण भी सामने आ रहे हैं, जब वह द्वार से बारात लौटा दे रही है। अपने आपको किसी से भी कम समझने को वह तैयार नहीं है। अंग्रेजी शासन के दौरान राम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर, ज्योतिबा फुले जैसे कई सुधारकों ने महिलाओं के उत्थान के लिए लड़ाइयां लड़ीं। मार्था मॉल्ट नी मीड और उनकी बेटी एलिजा काल्डवेल नी मॉल्ट को दक्षिण भारत में लड़कियों के शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए आज भी याद किया जाता है। उन्हें शुरुआत में स्थानीय स्तर पर रुकावटों का सामना करना पड़ा, क्योंकि पुरानी सोच से लडऩा कठिन था। पंडिता रमाबाई जैसी कई महिला सुधारकों ने भी महिला सशक्तिकरण हासिल करने में मदद की।

आजादी भारत में दिखा सबसे बड़ा बदलाव
आजादी के बाद से सरकार द्वारा देश की बेटी की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक व राजनीतिक स्थिति में सुधार लाने के कई प्रयास किए। उसे विकास की मुख्य धारा में समाहित करने हेतु विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और विकासात्मक कार्यक्रमों का संचालन किया। उसे उसके अधिकारों व दायित्वों के प्रति सजग करते हुए उनकी सोच में बदलाव लाने, आत्मनिर्भरता बनाने के लिए पिछले कुछ दशकों में विशेष प्रयास किए गए हैं। उसे शिक्षा देने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए हुए सुधार आन्दोलन समाज में नई जागरूकता लाया। शिक्षा ने उसे पुरुष के बराबर दर्जे पर होने के लिए प्रेरित किया। संविधान के अनुच्छेद 14, 15 व 16 ने भी उसकी आजादी को नए और अर्थपूर्ण आयाम दिए। इनके तहत उसे कानून के समक्ष बराबरी का अधिकार और किसी भी तरह के भेदभाव से कानूनी आजादी मिली। अधिक समताकारी वातावरण से उसे व्यक्तित्व के विकास के अवसर मिले। वर्ष 2001 को महिला सशक्तिकरण वर्ष के रूप में मनाया गया व पहली बार राष्ट्रीय महिला उत्थान नीति बनाई गई।

 

आज हर क्षेत्र में भारतीय महिला नंबर वन
अब बेटियां हर क्षेत्र में कमाल दिखाती दिख रही हैं। प्रतिभा पाटिल, मीरा कुमार , सोनिया गांधी, मायावती, वसुन्धरा राजे, सुषमा स्वराज, जयललिता, ममता बनर्जी, शीला दीक्षित आदि ने राजनीति के शीर्ष पदों पर खुद को साबित किया है। मेधा पाटकर, किरण मजूमदार, इलाभट्ट, सुधा मूर्ति आदि ने सामाजिक क्षेत्र में भी कुछ कर दिखाने को देश की बेटियों को प्रेरित किया है। खेल जगत में पीटी ऊषा, अंजू बाबी जार्ज, सुनीता जैन, सानिया मिर्जा आदि ने नए कीर्तिमान स्थापित किए हैं। आईपीएस किरण बेदी, अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स जैसी न जाने कितनी देश की बेटियों ने उच्च शिक्षा प्राप्त करके विभिन्न क्षेत्रों में अपने बुद्धि कौशल का परिचय दिया है। आंकड़े दर्शाते हैं कि हर साल कुल परीक्षार्थियों में 50 प्रतिशत महिलाएं मेडिकल की परीक्षा उत्तीर्ण करती हैं। देश के अग्रणी सॉफ्टवेयर उद्योग में 21 प्रतिशत पेशेवर महिलाएं हैं। फौज, पायलट, उद्यमी समेत सभी क्षेत्रों में जहां पहले पहले महिलाओं के होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वहां बेटियों ने खुद को सफलतापूर्वक स्थापित किया है। पहले कामकाजी महिला के पति को औरत की कमाई खाने वाला कह दिया जाता था। 20 वीं सदी के आखिर व 21 वीं सदी शुरुआत में पुरूष की मानसिकता बदली है। छोटे व बड़े परदे पर भी महिलाएं छाई हुई हैं, लेकिन विज्ञापनों में अभी भी उसे उपभोग की वस्तु की तरह पेश करना समाज की विकृत मानसिकता को दर्शाता है।
बाहर निकल रही है देवी वाली छवि से
जैसे-जैसे उसकी आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ रही है, उनकी आजादी का भी विस्तार हो रहा है। एकल परिवारों का बढ़ता चलन भी उसे सास-बहू के पचड़ों से दूर करके उसके लिए प्रगति की राह खोल रहा है। अब वह अपनी देवी वाली छवि से बाहर निकल रही है। उसकी सीधी-सी मांग है कि देवी का दर्जा देकर हमारी पूजा मत करो, बस हमें अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने दो। परिवार समेत हर क्षेत्र में निर्णय के स्तर पर उसकी बराबर भागीदारी को बल मिला है। लेकिन अभी भी अपने अधिकारों को लेकर वह पूरी तरह सजग नहीं बन पाई है। कभी समझौता करके चुपचाप बैठ जाती है, तो कभी जिद पकड़ कर समाज के पुराने ढर्रे को बदल देती है। अच्छी बात यह है कि सरकार, संविधान और कानून भी उसके साथ है। आज उसे शिक्षा का अधिकार है, अपना कॅरियर व जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। यह बात अलग है कि इन अधिकारों को पाने के लिए अभी भी उसे कभी पारिवारिक स्तर पर, तो कभी सामाजिक स्तर पर बहुत संघर्ष करना पड़ता है। यह पुरानी परंपराओं और नए चलन के संक्रमण का दौर है। एक तरफ देश बदलना चाहता है, दूसरी तरफ वह संकीर्ण मानसिकता से अभी पूरी तरह उबर नहीं पाया। बंधनों और बदलाव में तालमेल बैठा कर फिर भी देश की बेटी पढ़ रही है, आगे बढ़ रही है, अपने आपको साबित कर रही है।
फिर भी सुरक्षा के लिए संघर्ष जारी है
बेटी घर से बाहर निकलने की हिम्मत तो दिखा रही है, लेकिन निर्भया जैसे कांड उसके कदम पीछे भी खींच रहे हैं। आजादी के इतने सालों बाद भी वह खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करती है। वह अगर सारे विरोधों से लड़ कर लडक़ों की बराबरी से चलना भी चाहती है, तो अनहोनी की आशंका से कभी उसका परिवार तो कभी
उसके खुद के अंदर का डर उसे पीछे धकेल देता है। निर्भया कांड को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने महिला सुरक्षा से संबंधित कानूनों में महत्वपूर्ण बदलाव किया है। पुराने जुवेनाइल कानून 2000 को बदलते हुए नए जुवेनाइल जस्टिस, चिल्ड्रन केयर एंड प्रोटेक्शन बिल 2015 को लागू किया है। इस कानून के तहत अगर 16 से 18 साल के बीच की आयु का किशोर जघन्य अपराध में शामिल है, तो उस पर कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जाएगी।
आजादी के बाद बेटी को मजबूत बनाया है इन कानूनों ने
1. राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948 : इसके तहत महिलाओं को प्रसूति के समय कुछ आवश्यक अधिकार मिले।
2. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 : अंतर्जातीय विवाह को कानूनी स्वीकृति देने हेतु
3. हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 : हिन्दुओं के विधिवत परंपराओं को आधुनिक बनाने हेतु
4. अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956 : वेश्यावृत्ति की रोकथाम हेतु
5. हिन्दू उत्तराधिकारी अधिनियम 1956, संशोधन 2005 : वसीयत में महिलाओं को हिस्सा दिलाने हेतु
6. दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 : दहेज की रोकथाम के लिए
7. प्रसूति प्रसुविधा अधिनियम 1961, संशोधित 1995 : बच्चे के जन्म के समय महिलाओं की सुरक्षा हेतु
8. गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971 : विशेष परिस्थितियों में अनचाहे गर्भ से छुटकारे की अनुमति
9. हिन्दू महिला का संपत्ति का अधिकार, 1973 : वसीयत में महिलाओं को पूरा अधिकार दिलाने हेतु
10. बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006 : 21 वर्ष से कम के लडक़े या 18 वर्ष से कम उम्र की लडक़ी के विवाह को प्रतिबंधित किया गया है।
11. आपराधिक विधि, संशोधन अधिनियम 1983
12. कारखाना, संशोधन अधिनियम 1986 : कारखाने में काम करने वाली महिलाओं की सुरक्षा व अधिकारों के लिए
13. महिलाओं का अश्लील प्रतिनिधित्व निषेध अधिनियम, 1986 : विज्ञापनों, प्रकाशनों, लेखनों, पेंटिंग्स, चित्रों या किसी तरीके से महिलाओं के अश्लील प्रदर्शन पर रोक हेतु
14. कमीशन ऑफ सती, प्रिवेन्शन एक्ट 1987 : सती प्रथा से बचाव हेतु
15. घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005 : घरेलू हिंसा की रोकथाम हेतु
16. महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगित उत्पीडऩ अधिनियम, 2013 : कार्यस्थल पर महिलाओं को लैंगिक उत्पीडऩ से सुरक्षा देने हेतु

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