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देशभक्ति के जज्बे को संगीतबद्ध गीतों से बुलंद किया सलिल ने

Published: Sep 05, 2016 12:24:00 am

उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी

Salil Choudhary

Salil Choudhary

मुंबई। भारतीय सिनेमा जगत में सलिल चौधरी का नाम एक ऐसे संगीतकार के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपने संगीतबद्ध गीतों से लोगो के बीच देशभक्ति के जज्बे को बुलंद किया। सलिल चौधरी का जन्म 19 नवंबर, 1923 को हुआ था। उनके पिता ज्ञानेन्द्र चंद्र चौधरी असम में डाक्टर के रूप में काम करते थे। उनका ज्यादातर बचपन असम में हीं बीता। बचपन के दिनों से हीं उनका रूझान संगीत की ओर था। वह संगीतकार बनना चाहते थे।

उन्होंने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नही ली थी। उनके बड़े भाई एक आक्रेस्ट्रा में काम करते थे और इसी वजह से वह हर तरह के वाध यंत्रों से भली भांति परिचत हो गए। सलिल को बचपन के दिनों से हीं बांसुरी बजाने का बहुत शौक था। इसके अलावा उन्होंने पियानो और वायलिन बजाना भी सीखा। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा कोलकाता के मशहूर बंगावासी कॉलेज से पूरी की। इस बीच वह भारतीय जन नाटय् संघ से जुड़ गए।

वर्ष 1940 मे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम अपने चरम पर था। देश को स्वतंत्र कराने के लिए छिड़ी मुहिम में सलिल चौधरी भी शामिल हो गए और इसके लिए उन्होनें अपने संगीतबद्व गीतों का सहारा लिया। उन्होंने अपने संगीतबद्व गीतों के माध्यम से देशवासियों मे जागृति पैदा की। अपने संगीतबद्व गीतों को गुलामी के खिलाफ आवाज बुलंद करने के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया और उनके गीतों ने अंग्रेजो के विरुद्ध भारतीयो के संघर्ष को एक नई दिशा दी।

वर्ष 1943 मे सलिल चौधरी के संगीतबद्व गीतों बिचारपति तोमार बिचार और धेउ उतचे तारा टूटचे ने आजादी के दीवानों में नया जोश भरने का काम किया। अंग्रेजी सरकार ने बाद में इस गीत पर प्रतिबंध लगा दिया। पचास के दशक में उन्होंने पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके अपना अलग हीं अंदाज बनाया जो परंपरागत संगीत से काफी भिन्न था। इस समय तक सलिल चौधरी कोलकाता में बतौर संगीतकार और गीतकार के रूप में अपनी खास पहचान बना चुके थे। वर्ष 1950 में अपने सपनो को नया रूप देने के लिए वह मुंबई आ गए।


वर्ष 1950 में विमल राय अपनी फिल्म दो बीघा जमीन के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे।वह सलिल चौधरी के संगीत बनाने के अंदाज से काफी प्रभावित हुए और उन्होंने सलिल चौधरी से अपनी फिल्म दो

बीघा जमीन में संगीत देने की पेशकश की। सलिल चौधरी ने संगीतकार के रूप में अपना पहला संगीत वर्ष 1952 में प्रदर्शित विमल राय की फिल्म दो बीघा जमीन के गीत आ री आ निंदिया के लिए दिया। फिल्म की कामयाबी के बाद सलिल चौधरी बतौर संगीतकार फिल्मों में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए।

फिल्म दो बीघा जमीन की सफलता के बाद इसका बंगला संस्करण रिक्शावाला बनाया गया। वर्ष 1955 में प्रदर्शित इस फिल्म की कहानी और संगीत निर्देशन सलिल चौधरी ने हीं किया था। फिल्म दो बीघा जमीन की सफलता के बाद वह विमल राय के चहेते संगीतकार बन गए और इसके बाद विमल राय की फिल्मों के लिए सलिल चौधरी ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फिल्मो को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म काबुलीवाला में पाश्र्व गायक मन्ना डे की आवाज में सजा यह गीत ‘ऐ मेरे प्यारे वतन ऐ मेरे बिछड़े चमन तुझपे दिल कुर्बान’ आज भी श्रोताओं की आंखो को नम कर देता है। 70 के दशक में उनको मुंबई की चकाचैंध कुछ अजीब सी लगने लगी और वह कोलकाता वापस आ गए। इस बीच, उन्होंने कई बंगला गानें लिखे। इनमें सुरेर झरना और तेलेर शीशी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए। सलिल चौधरी के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी गीतकार शैलेन्द्र और गुलजार के साथ खूब जमी।

उनके पसंदीदा पाश्र्वगयिकों में लता मंगेश्कर का नाम सबसे पहले आता है। वर्ष 1958 में विमल राय की फिल्म मधुमति के लिए सलिल चैधरी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1998 में संगीत के क्षेत्र में उनके बहूमूल्य योगदान को देखते हुए वह संगीत नाटय अकादमी पुरस्कार से भी सम्मानित किए गए। सलिल चौधरी ने अपने चार दशक लंबे सिने कैरियर में लगभग 75 हिन्दी फिल्मों में संगीत दिया। हिन्दी फिल्मों के अलावे उन्होंने मलयालम, तमिल, तेलगू, कन्नड़, गुजराती, आसामी, उडिय़ा और मराठी फिल्मों के लिए भी संगीत दिया। लगभग चार दशक तक अपने संगीत के जादू से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान संगीतकार सलिल चौधरी 5 सितंबर 1995 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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