मार्च के अंत में, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने घोषणा की थी कि निवेशकों ने कोरोना महामारी के चलते विकासशील देशों से 83 बिलियन अमरीकी डॉलर (62.65 खरब रुपए) निकाल लिए हैं, जो अब तक का सबसे बड़ा पूंजी बहिर्वाह (कैपिटल आउटफ्लो) है। यूएनसीटीएडी के अनुसार एफडीआई के इतने तेजी से सिकुडऩे का सबसे ज्यादा प्रभाव उपभोक्ताओं पर पूरी तरह निर्भर उद्योग जैसे एयरलाइंस, होटल, रेस्तरां, ट्यूर एंड ट्रेवल एजेंसी, विनिर्माण उद्योग और ऊर्जा क्षेत्र पर सबसे ज्यादा पड़ेगा।
एफडीआई में इस गिरावट का असर सबसे ज्यादा दक्षिण एशिया के भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश जैसे विकासशील देशों पर ही ज्यादा पड़ेगा। क्योंकि विकासशील देशों के लिए एफडीआई प्रवाह में वैश्विक औसत से भी अधिक गिरावट आने की आशंका है। दूसरा कारण यह भी है कि बीते कुछ दशकों में एफडीआई पर अधिक निर्भर हो गए हैं। 1985 से 2017 के बीच विकासशील देशों में फडीआई के जरिए निवेश 14 बिलियन से बढ़कर 690 बिलियन(वर्तमान मूल्य) हो गया। यह वैश्विक एफडीआइ इन-फ्लो की हिस्सेदारी के रूप में 25 से 46 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्शाता है।