तीन दिन लड़के पढ़ेंगे, तीन दिन लड़कियां
पश्चिम बंगाल के मालदा जिले के एक सरकारी स्कूल ने एक बेहद अजीब-सा फरमान जारी किया है। इस फरमान के तहत छात्र-छात्राएं सप्ताह में तीन-तीन दिन स्कूल आएंगे। स्कूल प्रशासन का कहना है ऐसा छेड़छाड़ के मामलों को रोकने के लिए किया गया है। मालदा के हबीबपुर क्षेत्र के गिरिजा सुंदरी विद्या मंदिर के फैसले पर प्रशासन ने ऐतराज जताया है। उन्होंने इस कदम को अजीब बताते हुए इसे वापस लेने की मांग की। स्कूल के प्रधानाध्यापक रवींद्रनाथ पांडे ने दावा किया कि छेडख़ानी की कई घटनाएं सामने आने के बाद स्कूल इस कदम को उठाने के लिए मजबूर था। पांडे ने कहा, यह फैसला किया गया कि लड़कियां सोम, मंगल और शुक्रवार को और लड़के बुधवार, गुरुवार और शनिवार को कक्षाओं में आएंगे। पश्चिम बंगाल के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने इस मामले में जांच के आदेश दिए हैं।
ऊना के अंब में सरकारी स्कूल के शौचालय में छात्रा से बलात्कार मामले में स्कूल के शिक्षक पर आरोप लगाए गए। हमीरपुर में भी स्कूल प्रिंसिपल पर छात्रा को अश्लील मैसेज भेजने के आरोप लगे थे। कांगड़ा में स्कूल टीचर पर छात्रा के यौन शोषण का मामला सामने आया था। स्कूलों में बढ़ते छेड़छाड़ और यौन शोषण के मामलों से बच्चों की सुरक्षा पर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी को लेकर सरकारी स्कूलों के लिए फरमान निकाला गया है। हिमाचल के सरकारी स्कूलों में शिक्षक अब सज-धज कर स्कूल नहीं आ सकेंगे। स्कूलों में दुष्कर्म और छेड़छाड़ के बढ़ते मामलों को लेकर उच्च शिक्षा निदेशालय ने संज्ञान लिया है। उच्च शिक्षा निदेशक डॉ. अमरजीत कुमार शर्मा ने सभी जिला उपनिदेशकों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मीटिंग की व दिशा-निर्देश जारी किए। उन्होंने कहा कि शिक्षकों को सादे कपड़ों में स्कूल आना चाहिए, ताकि बच्चों का भी फैशन की ओर कम ध्यान जाए। शिक्षक रोल मॉडल होते हैं, ऐसे में शिक्षकों पर बड़ी जि मेदारी है कि बच्चों को सही दिशा में ले जाएं। एक समाचार पत्र की रिपोर्ट के अनुसार, उच्च शिक्षा निदेशक ने जिला उपनिदेशकों को शिक्षकों की स्कूलों में काउसंलिग करने को कहा। निदेशक ने कहा, बीते कुछ समय से स्कूलों में यौन शोषण के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। कुछ शिक्षकों की कार्यप्रणाली के चलते सभी को शर्मिंदा होना पड़ रहा है। ऐसे में शिक्षकों की जि मेदारी और अधिक बढ़ गई है। सभी शिक्षकों से खाली समय में लाइब्रेरी या स्टाफ रूम में बैठने की जगह स्कूल का निरीक्षण करने और बच्चों की गतिविधियों पर नजर रखने को कहा है।
हरियाणा में भी स्कूल-कॉलेज में जाने वाली छात्राओं पर हाफ जींस और टॉप पहनने के साथ ही मल्टीमीडिया मोबाइल के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाने के सुर बुलंद होते रहे हैं। इसको लेकर हिंदू महासभा जन-जागरण अभियान तक चलाता रहा है। हिंदू महासभा से जुड़े ललित भारद्वाज ने इसको लेकर प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की थी, जिसमें लिखा था कि हमारी मानसिकता अभी इतनी विकसित नहीं हुई कि लड़कियों और लड़कों को इतनी खुली छूट दे कि वह मनचाहे कपड़े पहन कर स्कूल-कॉलेज जाएं। हिंदू महासभा इसके खिलाफ है।
गुजरात पुलिस ने कहा, मत पहनो जींस
चार-पांच साल पुरानी बात है, जब गुजरात सरकार की पोरबंदर पुलिस ने एक पोस्टर जारी कर लड़कियों से जींस और छोटे कपड़े न पहनने की अपील की थी। ऐसे फरमान पूर्व में कट्टरपंथी और खाप पंचायत जारी करती रही हैं। इसमें गुजरात पुलिस का नाम भी जुड़ गया। पोरबंदर पुलिस ने महिला सशक्तीकरण अभियान के तहत यह पोस्टर तैयार करवाया था। इस पोस्टर में लड़कियों को जींस और शॉट्र्स जैसे कपड़े न पहनने की सलाह दी गई थी। साथ ही, युवतियों से कहा गया कि वह सलीकेदार कपड़े पहनें, जबकि गुजरात के पास उन दिनों एक महिला मु यमंत्री थीं।
कुछ बरस पहले बिजनौर में जाटों के एक संगठन की ओर से भी समुदाय की लड़कियों के जीन्स और टी-शर्ट पहनकर कॉलेज जाने पर स त आपत्ति जाहिर की गई थी। इस चलन के विरोध में अभियान भी चलाया गया। संगठन का मानना है कि लड़कियां पारंपरिक वस्त्र अपनाएं। राष्ट्रीय जाट महासंघ नामक इस संगठन की हल्दौर में हुई पंचायत में राष्ट्रीय महासचिव नृपेन्द्र देशवाल ने कहा था कि विकृत होते समाज में महिलाएं ‘अपनी इज्जत अपने हाथÓ के सच को अपनाते हुए शालीन पोशाक पहनें, ताकि उन्हें छेडख़ानी और दूसरी अभद्र घटनाओं को न्यौता देने का दोषी नहीं माना जाए। उन्होंने कहा कि प्रधानाचार्यों से अपने छात्र-छात्राओं के लिए शालीन पोशाक निश्चित करने को कहा जाएगा। संगठन लड़कियों द्वारा कॉलेज तथा स्कूलों में मोबाइल फोन ले जाने के भी खिलाफ रहा है।
सदियां गवाह हैं कि स्त्रियों ने सुरक्षा के नाम पर चारदीवारी में कैद हो जाना भी स्वीकारा है, लेकिन वहां भी भीतर ही भीतर शोषण की गाथा चली है। ऐसे में जरूरत इस बात है कि हम अपने सोच की दिशा बदलें, क्योंकि लड़कियों पर पाबंदी लगाकर भी हम उन्हें सुरक्षा नहीं दे पा रहे हैं। स्कूल के स्तर पर बच्चों और शिक्षकों, दोनों की काउंसलिंग होनी चाहिए। लड़के और लड़कियों को अलग-अलग दिन बुलाया जाएगा, तो वे कभी दोस्ताना रिश्ते को जी नहीं सकेंगे और लड़कियों पर हमले बढ़ेंगे ही। सीसीटीवी कैमरे की नजर में स्कूल की गतिविधियां होनी चाहिए, परिपक्व टीचर को महज सादे कपड़े पहनाकर बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं की जा सकती।