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अपने दमदार भाषण के लिए पहचानी जाती थीं इंदिरा गांधी, पढ़ें उनके तीन बेहतरीन भाषण

locationनई दिल्लीPublished: Oct 31, 2017 01:04:58 pm

Submitted by:

Ravi Gupta

इंदिरा गांधी ऐसी दमदार नेता थी कि जब वह बोलती थी, तो पूरा भारत उनका भाषण सुनता था… आइए आपको बताते हैं उनके कुछ बेहतरीन भाषण

indra gandhi
नाक टूटने पर भी जारी रखा भाषण
1967 में एक चुनावी सभा में इंदिरा गांधी ने जैसे ही बोलना शुरू किया, उनके ऊपर वहां मौजूद भीड़ ने पत्थरों की बरसात शुरू कर दी। स्थानीय नेताओं ने उनसे अपना भाषण तुरंत समाप्त करने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने बोलना जारी रखा। अभी वो भीड़ से कह ही रही थीं, ‘क्या इसी तरह आप देश को बनाएंगे? क्या आप इसी तरह के लोगों को वोट देंगे।’ तभी एक पत्थर उनकी नाक पर आ लगा। उसमें से खून बहने लगा। उन्होंने अपने दोनों हाथों से बहते खून को पोंछा। उनकी नाक की हड्डी टूट गई थी, लेकिन ये इंदिरा गांधी को विचलित करने के लिए काफी नहीं था। अगले कई दिनों तक चेहरे पर प्लास्टर लगाए हुए उन्होंने पूरे देश में चुनाव प्रचार किया। हमेशा अपनी नाक के लिए संवेदनशील रहने वाली इंदिरा गांधी ने बाद में मजाक भी किया कि उनकी शक्ल बिल्कुल ‘बैटमैन’ जैसी हो गई है। इसका खुलासा ‘इंदिरा : इंडियाज मोस्ट पावरफुल प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडियाÓ किताब में सागरिका घोष ने किया है।
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संसद में भाषण देने में कभी कांप जाया करती थीं
सागरिका घोष ने लिखा है कि इंदिरा गांधी शुरू से हिम्मती नहीं थीं। जब वो प्रधानमंत्री चुनी गईं तो संसद का सामना करने में घबरा जाया करती थीं। उस समय मीनू मसानी, नाथ पाई और राम मनोहर लोहिया जैसे दिग्गज इंदिरा गांधी के बोले एक-एक शब्द में नुक्स निकालने के लिए तैयार रहते थे। जब वह सूचना और प्रसारण मंत्री के रूप में संसद में किसी प्रश्न का उत्तर देने के लिए खड़ी होती थीं, तो उनके हाथ बुरी तरह से कांपने लगते थे। उनके डॉक्टर केपी माथुर के हवाले से उन्होंने लिखा है कि जिस दिन उन्हें संसद में भाषण देना होता था, घबराहट में या तो उनका पेट खराब हो जाता था या उनके सिर में दर्द होने लगता था, लेकिन जब वो चुनाव जीत कर संसद में आईं और उन्होंने कांग्रेस का विभाजन किया, तब उनमें जो आत्मविश्वास आया।
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इंदिरा गांधी का आखिरी भाषण
भुवनेश्वर में 30 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी ने अपना आखिरी भाषण ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में दिया था। बताते हैं कि उनका यह भाषण उनके सूचना सलाहकार एचवाई शारदा प्रसाद ने लिखा था, लेकिन उन्होंने उससे हटकर अलग बोलना शुरू कर दिया। वह बोलीं, ‘मैं आज यहां हूं।’ कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं, मैं रहूं या न रहूं। मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।’
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