बदमाशों में वहशीपना इतना ज्यादा आता जा रहा है कि शायद उन्हें चीख-पुकार में भी मजा आने लगा है। यह स्थिति तो जंगल वाले कानून में भी शायद ही मिलती हो। जबलपुर तो संस्कारधानी भी कहा जाता है। यहां पूरे साल धार्मिक आयोजनों की बहार रहती है। धार्मिक अनुष्ठान गली-मोहल्लों में होते ही रहते हैं। भागमभाग की जिंदगी जीने वाला भी रोज नर्मदा तट पर जरूर पहुंचता है। इन अर्थों में आखिर लोगों में आपराधिक प्रवृत्ति आ कहां से रही है? चलो मान लें कि समाज के बिगड़े तबके की सोच पर पुलिस का पहरा नहीं लगाया जा सकता। लेकिन, अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है, इसके लिए तो सिर्फ और सिर्फ ही जिम्मेदार है। पुलिस को देखकर अपराधियों की रूह न कांप जाए, तो मानना पड़ता है कि कुछ तो गड़बड़ है।इस गड़बड़ी को पुलिस ने दूर नहीं किया तो हालात हाहाकरी होते जाएंगे।