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समय के साथ किस तरह बदल रहा है पिता-पुत्र का रिश्ता!

देश के अमीर परिवारों में शुमार सिंघानिया परिवार में पिता और पुत्र में विवाद चर्चा में है। समाज में पिता-पुत्र के संबंधों को लेकर एक बहस छिड़ गई है…

नई दिल्लीAug 18, 2017 / 06:50 pm

Navyavesh Navrahi

father son

father-son relationship

 जमीन-जायदाद, राज-पाठ और सत्ता को लेकर पिता-पुत्र के रिश्ते में टकराव की कहानियों से हमारा इतिहास और मिथिहास भरा हुआ है। उस दौर से देखें तो आज इस रिश्ते में बदलाव देखा जा सकता है। पहले पिता और पुत्र में रिश्ता औपचारिक ज्यादा था। जबकि अब ये दोस्ताना स्तर तक पहुंच गया है। आज का भागदौड़ और चकाचौंध भरा माहौल आर्थिक समृद्धि दे रहा तो दिखई देता है, किंतु बेहद नजदीक के रिश्तों के बीच की गरिमा और संवेदनशीलता को कम कर रहा है। ऐसा अध्ययनों में भी समने आया है। पिता-पुत्र के सहज संबंधों में समाज में आखिर दिक्कत कैसे आ रही है, इससे इस दास्ता से भी समझ सकते हैं।

बेहद जटिल होता है बाप-बेटे का रिश्ता
दिल्ली के रघुनाथ (बदला नाम) बताते हैं- अपने पिता के साथ मेरा दोस्ताना रिश्ता था, फिर भी कई मुद्दों पर उनसे विवाद हो जाया करता था। मैं सोचता था कि मैं अपने बेटे के साथ ऐसा नहीं होने दंूगा। अपने व्यवहार में बेहद सतर्क रहूंगा। खैर, यह सब सोचने का कोई लाभ नहीं हुआ। बहुत उदार और मित्रवत व्यवहार करने के बाद भी मेरा अपने बेटे से कई मुद्दों पर टकराव होता रहता है।
छवि बदली है पिता की

जबकि समाजशात्रियों की मानें तो कुछ दशक पहले या जैसा हम अपने पिता से उनके पिता के बारे में सुनते हैं, तो हमें पिता और पुत्र के रिश्ते में बहुत बड़े बदलाव नजर आते हैं। आज पितापुत्र के रिश्ते के बीच खुलापन आया है। किसी जमाने में उन के बीच डर की जो अभेद दीवार होती थी वह समय के साथ गिर गई है और उस की जगह ले ली है एक सहजता ने, दोस्ताना व्यवहार ने। जबकि तीन-चार दशक पहले पिता की भूमिका किसी तानाशाह से कम नहीं होती थी। तब पिता का हर शब्द सर्वोपरि होता था। उसकी बात टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी। वह अपने पुत्र की इच्छाअनिच्छा से बेखबर अपनी उम्मीदें और सपने उस को धरोहर की तरह सौंपता था। पिता का ऐसा व्यवहार बेटे को उसके नजदीक नहीं देता था।
संवादहीनता खत्म हो गई संबंधों में
मनोचिकित्सक नियति धवन के अनुसार, संचार तंत्र के प्रसार ने भी पुत्र के बीच की दूरी को कम किया है। इससे खुलापन आया है और संबंधों में संवादहीनता काफी हद तक खत्म हुई है।
कई बातें…सांस्कृति में पहले से ही हैं
हमारी सांस्कृति में पिता के आशीर्वाद के महत्व की चर्चा है। शास्त्रों की मान्यता है कि जिस बालक-बालिका का पिता का आशीर्वाद मिल जाता है, उसका जीवन धन्य हो जाता है। बच्चों को इसके प्रति जागरूक किया जाना चाहिए।
एक्‍सपर्ट की राय : अच्छे स्कूल में दाखिला ही नहीं बनाता अच्छा
स माजशास्त्री अंकुर पारे के अनुसार दिक्कत यह है कि आज के आधुनिक जीवन में पिता-पुत्र का सहज संबंध विकसित नहीं हो पा रहा है। व्यस्तता और भागदौड़ भरी दिनचर्या की वजह से पिता बेटे को समय नहीं दे पाते। वे सोचते हैं कि उनका दायित्य बस एक अच्छे स्कूल में दाखिला करा देने तक सीमित है। बाकी का काम स्कूल वाले कर ही देंगे। लेकिन बच्चे जब बड़े होते हैं, तब पता चलता है कि बाप-बेटे के रिश्ते में कितनी दूरी आ गई है। आज के बच्चे अगर व्यावहारिक सामाजिक ज्ञान से वंचित हैं, तो इसका एक बड़ा कारण है पिता से उनकी दूरी।
–सलाह–

आप अपने बेटे से जिंदगीभर करीब रहना चाहते है तो कुछ बातों पर ध्यान रखें

ज्यादा समय दें : पैसे कमाने की दौड़ में इस कदर बिजी न हों कि बच्चों पर ध्यान न दिया जाए। ऐसे बच्चे दूर होने लगेंगे। बच्चों के साथ बातचीत से संवाद बनाए रखें।
सलाह देते रहें…: बेटा कुछ बातें अपने पिता से शेयर करना चाहता है। उसे अच्छी सलाह की जरूरत हो सकती है। सलाह देने के लिए हमेशा उपलब्ध रहें।
अच्छा व्यवहार : ज्यादातर बेटों की इच्छा होती हैं कि वे पिता की तरह बनें। इसलिए उसके सामने अच्छा उदाहरण रखें, ताकि वह जीवन में सफल हो सके।
काम में मदद लें : जब मुमकिन हो, तब बेटे को अपने काम में शामिल करें। उसे घर के छोटे-मोटे काम करने भी सिखाएं। इससे पिता-पुत्र का रिश्ता और मजबूत होता है।
बेटे का दोस्त : अपने बेटे के अच्छे दोस्त बनें, ताकि वह अपने दुख-सुख की बातें आपसे सांझा कर सके। उसके साथ खेलें, पढ़ाई में उसकी मदद करें।

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