हे ईश्वर अब कृपा करो, मन की दिलासा घबरा रही है।
नित नए दिन एक नई अनहोनी की आहट सुनाई दे रही है। कोशिशें अब हिम्मत रखने की टूटती नजर आ रही है।
कहीं कंधे टूट गए हैं, अपनों का बोझा उठाते उठाते कहीं अपने अपनों की खुशबू भी न पा रहे हैं।।
नित नए दिन एक नई अनहोनी की आहट सुनाई दे रही है। कोशिशें अब हिम्मत रखने की टूटती नजर आ रही है।
कहीं कंधे टूट गए हैं, अपनों का बोझा उठाते उठाते कहीं अपने अपनों की खुशबू भी न पा रहे हैं।।
ना मरहम लगाने को है, ना कोई दु:ख बटाने को है।
ढांढस बंधाना अब खुद ही खुद मजबूरी बन गई है।
सुर्ख आंखे भी अब दगा दे रही है। न जाने आंखो का पानी कहां बह गया?
दिन दिन आंखें पथरा रही हैं।
ढांढस बंधाना अब खुद ही खुद मजबूरी बन गई है।
सुर्ख आंखे भी अब दगा दे रही है। न जाने आंखो का पानी कहां बह गया?
दिन दिन आंखें पथरा रही हैं।
बेजुबां बन गए दर्द की इंतहा रिश्तों को बहा ले गई है।
निष्ठुर मन की उदासी दिल को खुद से जुदा कर गई है। हमें अपने कर्मों का सच में सबक मिल गया है।
तेरी विस्मृतियों का गहरा प्रतिफल मिल गया है। अब विनती करूं मैं हाथ जोड़। हम
निष्ठुर मन की उदासी दिल को खुद से जुदा कर गई है। हमें अपने कर्मों का सच में सबक मिल गया है।
तेरी विस्मृतियों का गहरा प्रतिफल मिल गया है। अब विनती करूं मैं हाथ जोड़। हम
प्रजा है तेरी हमसे ना यूं मुंह मोड़।।
दिखाओ एक आशा की किरण फिर से आ गए हैं हम तेरी शरण। —कविता लेखक, सुदर्शन शर्मा, मोरीजा
दिखाओ एक आशा की किरण फिर से आ गए हैं हम तेरी शरण। —कविता लेखक, सुदर्शन शर्मा, मोरीजा