रिश्तों में प्रेम रहना जरूरी
उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने नन्दीवर्धन और वर्धमान के प्रसंग से बताया कि कई बार रिश्ते जीवन में ऐसे मोड़ पर ले आते हैं कि हृदय में प्रेम रहते हुए भी मन में नासमझी और गलतफहमी के कारण व्यवहार बंद हो जाता है।
चेन्नई•Nov 10, 2018 / 02:21 pm•
Ashok
रिश्तों में प्रेम रहना जरूरी
चेन्नई. श्री एएमकेएम जैन मेमोरियल, पुरुषावाक्कम में विराजित उपाध्याय प्रवर प्रवीणऋषि एवं तीर्थेशऋषि महाराज ने नन्दीवर्धन और वर्धमान के प्रसंग से बताया कि कई बार रिश्ते जीवन में ऐसे मोड़ पर ले आते हैं कि हृदय में प्रेम रहते हुए भी मन में नासमझी और गलतफहमी के कारण व्यवहार बंद हो जाता है। हमारे रिश्तों में व्यवहार चाहे रहे ना रहे लेकिन आपसी प्रेम नफरत में कभी न बदले, मन में दुर्भावना न आए। नंदीवर्धन गलतफहमी के कारण छोटे भाई वर्धमान से दूर हो जाते हैं लेकिन उनके हृदय का प्रेम कम नहीं होता है। हमें उनके चरित्र की इस अच्छाई को अपने जीवन में उतारना चाहिए।
उन्होंने बताया उत्तराध्ययन में कहा गया है कि यदि अपनों की कोई बात अच्छी न लगे या आप उससे सहमत न हो तो उसके बारे में कभी भी बुरा न बोलें, मन में तिरस्कार का भाव न लाएं।
नंदीवर्धन का प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि हम सभी को नंदीवर्धन के जीवन से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि किसी से अहसमत होने पर उस व्यक्ति को ही गलत न ठहराएं। अपना विरोध भी इस प्रकार करें कि आपसी रिश्तों में दरार न आए और रिश्ते टूटे नहीं। वर्तमान में जैन समाज को गहराई से इतिहास और धर्म का अध्ययन करना, उससे जानना और अनुसरण करना आवश्यक है। नहीं तो आने वाले विकट समय में हम अपने हाथों की अपनी विरासत को नष्ट कर देंगे। परमात्मा ने जीवमात्र को अभयदान दिया है। स्वयं अभय होकर जीवमात्र को अभयदान दें। तीर्थेशमुनि ने प्रभु भक्ति भजन श्रवण कराया। १० नवम्बर को ९ से १० बजे तक वीरत्थुई विवेचन और दोपहर ‘अर्हम कपल’ नाम की पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम होगा।
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