दीपिका
रिश्तों के गणित में हर बार दो और दो चार नहीं होते। इस गणित के अपने समीकण होते हैं और समय के साथ बदलते भी हैं। एक समय था, जब घरेलू हिंसा के शिकार के तौर पर सिर्फ महिलाओं का अक्स उभर कर सामने आता था। लेकिन समय के साथ इस समीकरण ने भी अपने को बदल लिया है।
शर्मिन्दगी, जो करती है सहने को मजबूर
कई ऐसे पुरुष भी हैं, जो प्रताडि़त हैं या हो रहे हैं। पर ‘बीवी से पिटने वाला मर्द’, जैसे जुमले से खुद को दूर रखने की जद्दोजहद में वह किसी से कुछ कह भी नहीं पाते। आर्थिक संबलता से प्राप्त हुए आधिपत्य के अधिकार ने रिश्तों में इस नई प्रवृति को जन्म दिया है।
… और अचानक वो चिल्लाने लगी
अनामिका और सारांश की शादी तीन साल पहले हुई है। दोनों पढ़े-लिखे और नौकरीपेशा हैं। शादी की शुरुआत में सब ठीक-ठाक था। शादी के कुछ सालों के बाद एक दिन अचानक अनामिका को किसी बात पर इतना गुस्सा आया कि वह पति पर बुरी तरह चिल्लाई। सारांश के लिए यह बहुत अटपटा था, पर उसने इसे एक घटना मान कर छोड़ दिया। इसके बाद इस तरह की घटनाएं बढऩे लगी। अनामिका का चिल्लाना, गुस्से में चीजें फेंकना, भद्दी बातें कहना, गुस्से में जोर से सारांश का हाथ पकडऩा या उसे खींचना आदि जैसी घटनाएं रोजमर्रा की बात हो गईं। वहीं सारांश धीरे-धीरे इन घटनाओं से डरने लगा। उसे घर जाने में डर लगने लगा। सारांश के लिए यह बेहद घुटनभरा था। वह किसी को बता भी नहीं पाता था कि उसकी पत्नी उसके साथ क्या कर रही है। उसे डर था कि लोग उसका मजाक उड़ाएंगे। हमेशा खुश रहने वाला सारांश डिप्रेशन में आ गया था। उसने डॉक्टर से संपर्क किया, जहां अब वह ट्रीटमेंट ले रहा है।
दुल्हे भी जलये जा रहे है…
पुरुष अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था, सेव फैमिली फाउंडेशन के को-ऑर्डिनेटर ऋत्विक बिसारिया ने बताया कि अनेक विदेशी रिसर्च यह बताते हैं कि निजी संबंधों में होने वाले अपराधों में महिलाओं द्वारा की जाने वाली हिंसा की तीव्रता या आवेग हमेशा ज्यादा होता है। हमने दो साल पहले ही अपनी हेल्प लाइन शुरू की है और हमें पुरुषों के साथ होने वाली हिंसा के ऐसे-ऐसे उदाहरण मिले हैं, जिनके बारे में हम-आप कल्पना भी नहीं कर सकते।
आपने दहेज के लिए बहुओं को जलाने की कहानी तो जरूर सुनी होगी, लेकिन हमारे पास ‘ग्रूम बर्निंग’ (दुल्हों को जलाना) के मामले भी आए हैं। कई पुरुष अपने परिवारों को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, लेकिन उनके साथ जो हिंसक घटनाए हो रही हैं, उनकी सुनवाई कहीं पर नहीं होती है, क्योंकि इसके लिए न तो कानून है और न ही सरकारें कोई प्रयास ही कर रही हैं।
मसला तो है, इसे समझें
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डॉ. हरीश शेट्टी बताते है कि इसके प्रमुख कारणों में डिप्रेशन, बॉर्डर लाइन पर्सनेलिटी सिंड्रोम और गुस्सा शामिल हैं। डिप्रेशन के चलते ज्यादातर लोग अपना गुस्सा, परेशानी या अपना भावनात्मक अवसाद अपने साथी पर उतारने की कोशिश करते हैं और इस कोशिश में वह समझ भी नहीं पाते कि वह किसी पर किसी तरह की हिंसा कर रहे हैं। बॉर्डर लाइन पर्सनेलिटी सिंड्रोम भी एक बड़ी समस्या है। ऐसे लोग अपनी बात साबित करने के लिए झूठ बोल सकते हैं, यहां तक की अपने पिटने की झूठी अफवाह भी फैला सकते हैं। यह स्थितियां किसी एक जेंडर से नहीं जुड़ी। ऐसा मर्द-औरत दोनों कर सकते हैं। डॉ. शेट्टी बताते हैं कि सबसे बड़ी समस्या है कि हमारा कानून अब भी घरेलू हिंसा को सिर्फ महिलाओं से जुड़ा मुद्दा मानता है।
सरकारी आंकड़ों की अधूरी कहानी…
पुरुषों के साथ हो रही घरेलू हिंसा के मामलों की सबसे कमजोर कड़ी है आंकड़े। नेशनल क्राइम ब्यूरो का डेटा और
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