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आखिर नीट से इतना डर क्यों?

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चेन्नईSep 12, 2020 / 11:01 pm

ASHOK SINGH RAJPUROHIT

NEET

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चेन्नई. राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (नीट) से एक दिन पहले तमिलनाडु में फिर एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। पिछले एक महीने में नीट के डर से तमिलनाडु के तीन विद्यार्थी मौत को गले लगा चुके हैं। हर साल नीट की परीक्षा से पहले डर के मारे और बाद में विफल होने पर कई छात्र आत्महत्या कर लेते हैं। तमिलनाडु के राजनीतिक दल नीट का लगातार विरोध करते आ रहे हैं। कथित रूप से नीट की वजह से हुई एक और मौत ने आग में घी का काम किया है।
नीट को लेकर तमिलनाडु के छात्रों में डर इस कदर है कि नीट लिखने वालों की संख्या लगातार घट रही है। पिछले साल से नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) परीक्षा का आयोजन कर रही है। एजेंसी के अनुसार इस साल तमिलनाडु में 1,17,990 छात्रों ने ही नीट के लिए आवेदन किया जबकि बीते वर्ष 1,34,714 छात्रों ने पंजीयन कराया था। बहरहाल, तमिलनाडु देश के उन छह राज्यों में शुमार हैं जहां एक लाख से अधिक आवेदक हंै।
नीट का विरोध तमिलनाडु में नया नहीं है। मेडिकल छात्र, अभिभावक, शिक्षक व राजनीतिक नेता अक्सर नीट का विरोध करते रहे हैं। मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) ने जब 2012 में नीट को लेकर खाका तैयार किया और सुप्रीम कोर्ट से ग्रीन सिग्नल मिल गया। तब भी तमिलनाडु मजबूती के साथ इसके विरोध में डटा रहा। तर्क था कि एमसीआई के प्रस्तावित सिलेबस व तमिलनाडु के स्टेट सिलेबस में बड़ा अंतर है। तमिलनाडु का कहना था कि तमिलनाडु के छात्रों खासकर ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी इस वजह से मेडिकल शिक्षा से वंचित हो जाएंगे। साथ ही राज्य में अधिकांश छात्र राज्य बोर्ड से ताल्लुक रखते हैं। ऐसे में सीबीएसई के छात्रों को इसका अधिक लाभ मिलेगा। पहले चिकित्सा संस्थानों में दाखिले के लिए होड लगी रहती थी। कई निजी संस्थानों में मैनेजमेंट कोटे का प्रावधान था। दाखिले के लिए कालेज खुद ही शर्तें तय करते थे। ऐसे में मैनेजमेंट के लिए कालेज चलाना कमाई का बड़ा धंधा बन चुका था। पारदर्शिता व व्यावहारिक व्यवस्था के अभाव में कई मेघावी विद्यार्थी दाखिले से वंचित रह जाते थे। इसी को देखते हुए नीट शुरू की गई ताकि एकरूपता लाई जा सके।
चूंकि नीट का मसला तमिलनाडु में राजनीति का केंद्र बन चुका है इसलिए एआईएडीएमके सरकार ने भी अन्य विपक्षी दलों के साथ इसका विरोध किया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया, लेकिन एनटीए की प्रतिबद्धता के बाद नीट आयोजन की अनुमति मिल गई। नीट का प्रबल विरोध उस वक्त शुरू हुआ था जब 2017 में अनिता नाम की छात्रा ने खुदकुशी कर ली थी। उसके बाद से हर साल नीट की वजह से आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं।
केंद्र सरकार से नीट से छूट के विधेयक को अनुमति नहीं मिलने के बाद तमिलनाडु सरकार ने राज्य के विद्यार्थियों का अकादमिक स्तर विकसित करने में जुटी है जो कि ठोस और स्वागत योग्य कदम है। सरकार ने पिछले साल से छात्रों के लिए निशुल्क कोचिंग की व्यवस्था की, लेकिन पहले स्थानीय निकाय चुनाव, फिर परीक्षाओं व बाद में लॉकडाउन के चलते कक्षाएं सुचारू नहीं हो सकी। सरकार ने कल्वी टीवी पर भी नीट पढ़ाने की व्यवस्था की लेकिन इसका लाभ ग्रामीण व गरीब वर्ग के अभ्यर्थियों को इतना नहीं मिल पा रहा है। जरूरत इस बात की भी है कि तमिलनाडु के पाठ्यक्रम को सीबीएसई मानकों के अनुसार अपग्रेड किया जाए। ऐसे में शिक्षकों को भी नए पाठ्यक्रम से सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में दो तीन-साल जरूर लग सकते हैं लेकिन इससे छात्रों का नीट को लेकर डर खत्म होने में बहुत मदद मिल सकती है। बिहार ने कुछ ऐसा ही किया और वहां छात्र अब नीट के लिए तैयार हो रहे हैं। यही वजह है कि बिहार में इस साल नीट छात्रों का पंजीयन 28 फीसदी बढ़ा है। तमिलनाडु भी बिहार से सीख लेकर नीट के छात्रों की राह आसान बना सकता है।

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