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कविता-आम आदमी

कविता

May 28, 2022 / 03:21 pm

Chand Sheikh

कविता-आम आदमी

कविता-आम आदमी

चैतन्य भट्ट

उलझा हुआ मन
तार तार होता तन
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की

रोटी की चिंता
बेटी बेटे की फिक्र
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की

रोजगार की आस
जीवन चलाने की फांस
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की
बढ़ते दाम लुटती जेब
खरीदारी की बढ़ती रेल
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की

टूटते हुए सपने
दूर होते अपने
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की

सिर्फ बातों का जमा खर्च
सर पर चढ़ता कर्ज
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की
नफरत की बढ़ती दीवार
भूला आपस का प्यार
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की

फाका करती जनता
मौज करते नेता
यही तो तस्वीर है
आम आदमी की

पढि़ए एक और कविता

कविता-लोहा और हीरा बन निखरना होगा।
देवप्रताप सिंह परिहार
अश्व की तरह दौडऩा होगा,
जल की तरह बहना होगा,
लोहे की तरह तपना होगा,
हीरे की तरह चमकना होगा।

समय के साथ चलना होगा,
अपने पथ पर बढऩा होगा,
अस्थिर हो लक्ष्य प्राप्त करना होगा,
अश्व की तरह दौडऩा होगा।
वेग प्रवाह से बढऩा होगा,
पारस से टकराकर अग्रसर होना होगा,
किसी मूल्यवान सांचे में ढलना होगा,
एक उत्तम स्वरूप में बदलना होगा,
जल की तरह बहना होगा।

अग्नि में तपना होगा,
विषम परिस्थिति से उबरना होगा,
एक जटिल सरिया बनना होगा,
स्वयं के भवन को साधना होगा,
खड़क की भांति रक्षक बनना होगा,
लोहे की तरह तपना होगा।
गुमनाम खानों से निकलना होगा,
स्वयं को कोहिनूर बनाना होगा,
सबसे मूल्यवान बनना होगा,
देश के सर का ताज बनना होगा,
स्वयं का सर्वस्व न्योछावर करना होगा,
विपत्ति के समय सहायक बनना होगा,
हीरे की तरह चमकना होगा।

लोहे की तरह तपना होगा,
हीरे की तरह चमकना होगा।।
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