जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं । जिद को छोड़ दो तुम तो,
अहं को मार लूंगा मैं।
खता जो हो गई अब तक,
सब स्वीकार लूंगा मैं। जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं।
जरा सा मैं बदल जाऊं । जिद को छोड़ दो तुम तो,
अहं को मार लूंगा मैं।
खता जो हो गई अब तक,
सब स्वीकार लूंगा मैं। जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं।
समर्पण भाव से होती,
है नैया पार जीवन की।
खेवैया तुम जो बन जाओ,
तो मैं पतवार बन जाऊं। जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं। निर्मल हो अगर मन तो,
कोई विद्वेश ना होगा।
बनो तुम स्नेह की गागर,
तो मैं रसधार बन जाऊं।
है नैया पार जीवन की।
खेवैया तुम जो बन जाओ,
तो मैं पतवार बन जाऊं। जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं। निर्मल हो अगर मन तो,
कोई विद्वेश ना होगा।
बनो तुम स्नेह की गागर,
तो मैं रसधार बन जाऊं।
जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं । दिलों को प्रेम पूरित कर,
मधुर सौगात बन जाओ।
‘घन’ हूं ‘श्याम’ मैं बस तुम,
मेरी बरसात बन जाओ। जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं ।।
जरा सा मैं बदल जाऊं । दिलों को प्रेम पूरित कर,
मधुर सौगात बन जाओ।
‘घन’ हूं ‘श्याम’ मैं बस तुम,
मेरी बरसात बन जाओ। जरा से तुम बदल जाओ,
जरा सा मैं बदल जाऊं ।।
पढि़ए एक नवगीत भी नवगीत
वर्षा ऋतु आते ही रूबी माधव श्रीवास्तव
——————-
वर्षा ऋतु आते ही
पत्तों की डालियां झाूमने लगीं
डाल-डाल कोयलियां
चहकने लगीं…
सूखे ठूंठों में जान
भरने लगीं
नन्हीं कोपलें मुस्कराने लगीं…
रंग बिरंगी तितलियां
फूलों पर मंडराने लगीं
भौरों की गूंजन
गुन गुन करने लगी…
सौंधी सौंधी खुशबू
माटी की लिए
हूक पिया मिलन की
मन में उठने लगी …..
बूंदों की नन्हीं नन्हीं
हलचल कोमल बूंदें
गालों पर पड़ते ही
याद प्रणय पलों की
रह रह कर आने लगी….
सोचती रही एक पल को
मेरे गोरे गालों पर ये नन्हीं नन्हीं
बूंदें कुछ समय और ठहर जाती
थोड़ा सा विश्राम पा जाती,
पर ठहर नहीं पाती है
बस ऐसे ही जिंदगी
कब ठहरी है…
दिन रात घड़ी की सुइयों
संग संग चलती रहती है।
वर्षा ऋतु आते ही रूबी माधव श्रीवास्तव
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वर्षा ऋतु आते ही
पत्तों की डालियां झाूमने लगीं
डाल-डाल कोयलियां
चहकने लगीं…
सूखे ठूंठों में जान
भरने लगीं
नन्हीं कोपलें मुस्कराने लगीं…
रंग बिरंगी तितलियां
फूलों पर मंडराने लगीं
भौरों की गूंजन
गुन गुन करने लगी…
सौंधी सौंधी खुशबू
माटी की लिए
हूक पिया मिलन की
मन में उठने लगी …..
बूंदों की नन्हीं नन्हीं
हलचल कोमल बूंदें
गालों पर पड़ते ही
याद प्रणय पलों की
रह रह कर आने लगी….
सोचती रही एक पल को
मेरे गोरे गालों पर ये नन्हीं नन्हीं
बूंदें कुछ समय और ठहर जाती
थोड़ा सा विश्राम पा जाती,
पर ठहर नहीं पाती है
बस ऐसे ही जिंदगी
कब ठहरी है…
दिन रात घड़ी की सुइयों
संग संग चलती रहती है।