कैसे भूलूंगी मैं भैया,
किस्सा कान मरोड़ी का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरी ड्योढ़ी का।
एक दूजे की झाूठी थाली,
में हम खाना खाते थे।
या फिर एक दूजे की गोदी,
में भूखे सो जाते थे।
नहीं जाता है मन से भैया,
वह सुख भूखा सोने का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरे सोने का।
जब भी कोई कांटा भैया,
पग में तेरे चुभता था।
तब तेरे रोने से भैया ,
मेरा मन भी दुखता था।
कैसे भूलूंगी मैं भैया?
किस्सा तेरी रुलाई का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा खेत बंटाई का।
किस्सा कान मरोड़ी का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरी ड्योढ़ी का।
एक दूजे की झाूठी थाली,
में हम खाना खाते थे।
या फिर एक दूजे की गोदी,
में भूखे सो जाते थे।
नहीं जाता है मन से भैया,
वह सुख भूखा सोने का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा तेरे सोने का।
जब भी कोई कांटा भैया,
पग में तेरे चुभता था।
तब तेरे रोने से भैया ,
मेरा मन भी दुखता था।
कैसे भूलूंगी मैं भैया?
किस्सा तेरी रुलाई का।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
हिस्सा खेत बंटाई का।
बांहों के झाूले में तुझको ,
खूब झाुलाया करती थी।
अपने हिस्से का भी भैया,
दूध पिलाया करती थी।
नहीं जाता है मन से भैया
सना दूध से हो मुखड़ा।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
खेत का छोटा सा टुकड़ा।
नहीं चाहिए भैया मुझको
मेरे हिस्से का कुछ भी।
नहीं चाहिए सोना चांदी,
नहीं चाहिए भू कुछ भी
भैया मुझको दे देना तुम,
मन में प्यार का एक कोना,
मैं समझाूंगी मुझे मिला है,
पूरी दुनिया का सोना।
खूब झाुलाया करती थी।
अपने हिस्से का भी भैया,
दूध पिलाया करती थी।
नहीं जाता है मन से भैया
सना दूध से हो मुखड़ा।
नहीं चाहिए भैया मुझको,
खेत का छोटा सा टुकड़ा।
नहीं चाहिए भैया मुझको
मेरे हिस्से का कुछ भी।
नहीं चाहिए सोना चांदी,
नहीं चाहिए भू कुछ भी
भैया मुझको दे देना तुम,
मन में प्यार का एक कोना,
मैं समझाूंगी मुझे मिला है,
पूरी दुनिया का सोना।