वेद है तू, पुराणों का तू सार है।
उपनिषद, गूढ़ ग्रंथों का आधार है।
अंक में तेरे देवों की क्रीड़ास्थली,
तेरी बातों में गीता की श्लोकावली।।
दीप्त-दिनकर से तेरे प्रखर पुंज का
तेज पाया तो मैं भी उभर जाऊंगी…
नेह घन जो बरसते रहे उम्रभर,
नीर-निर्मल में आकर ठहर जाऊंगी।।2।।
ज्ञान सागर है तू…
उपनिषद, गूढ़ ग्रंथों का आधार है।
अंक में तेरे देवों की क्रीड़ास्थली,
तेरी बातों में गीता की श्लोकावली।।
दीप्त-दिनकर से तेरे प्रखर पुंज का
तेज पाया तो मैं भी उभर जाऊंगी…
नेह घन जो बरसते रहे उम्रभर,
नीर-निर्मल में आकर ठहर जाऊंगी।।2।।
ज्ञान सागर है तू…
धर्म-पारायणा गौतमी है तू मां।
ब्रह्मज्ञानी वरद गार्गी है तू मां।
जानकी, मां यशोदा तेरे रूप हैं,
सृष्टि,अम्बर,धरा तेरे प्रतिरूप हैं।।
धाम चारों बसे तेरे चरणों में मां,
पा चरण धूलि तेरी निखर जाऊंगी…
नेह घन जो बरसते रहे उम्रभर,
नीर निर्मल में आकर ठहर जाऊंगी।।3।।
ज्ञान सागर है तू…
ब्रह्मज्ञानी वरद गार्गी है तू मां।
जानकी, मां यशोदा तेरे रूप हैं,
सृष्टि,अम्बर,धरा तेरे प्रतिरूप हैं।।
धाम चारों बसे तेरे चरणों में मां,
पा चरण धूलि तेरी निखर जाऊंगी…
नेह घन जो बरसते रहे उम्रभर,
नीर निर्मल में आकर ठहर जाऊंगी।।3।।
ज्ञान सागर है तू…
दर्श जीजा सा तूने सदा ही दिया।
दीप बन करके पथ मेरा रोशन किया।
आज जो भी हूं, तेरी बदौलत हूं मां,
करती हूं नम हृदय से तेरा शुक्रिया।।
मैं शिवा सा समर्पण लिए देह में,
तेरे पद-पंकजों में बिखर जाऊंगी…
नेह घन जो बरसते रहे उम्रभर,
नीर-निर्मल में आकर ठहर जाऊंगी।।4।।
ज्ञान सागर है तू…
दीप बन करके पथ मेरा रोशन किया।
आज जो भी हूं, तेरी बदौलत हूं मां,
करती हूं नम हृदय से तेरा शुक्रिया।।
मैं शिवा सा समर्पण लिए देह में,
तेरे पद-पंकजों में बिखर जाऊंगी…
नेह घन जो बरसते रहे उम्रभर,
नीर-निर्मल में आकर ठहर जाऊंगी।।4।।
ज्ञान सागर है तू…
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