नादिया बताती हैं, ‘उस शिविर में बच्चों के खेलने की सुविधा मौजूद थी। मुझे लगा कि मैं फिर से बच्चा बनकर खेल सकती हूं। शिविर में रहते हुए उन्होंने फ्रेंच सीखने के अलावा, सॉकर (फुटबॉल) सीखना भी शुरू कर दिया। उस समय तक वे भी नहीं जानती थीं कि महिलाओं की भी पेशेवर फुटबॉल टीम होती है। वह केवल इतना जानती थीं कि उन्हें इस खेल से प्यार है और वह फुटबॉल में अपना भविष्य देखती थीं।
वह बहुत जबरदस्त खिलाड़ी थीं। नादिया ने शरणार्थी शिविर में कड़ी मेहनत की। अपनी लगन से ही वह आज एक पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी हैं और अपने करियर में अब तक 200 गोल दाग चुकी हैं। नादिया, पोर्टलैंड थॉर्न्स, मैनचेस्टर सिटी और पेरिस सेंट-जर्मेन टीमों के लिए एक स्टार खिलाड़ी रही हैं, जिन्होंने लीग के इतिहास में पहली बार चैंपियनशिप जीतने में मदद की। उनकी कड़ी मेहनत के पीछे प्रेरक शक्ति शरणार्थी शिविर में गरीबी और अभाव की जिंदगी भी थी।
फ़ोर्ब्स की सूची में भी शामिल हुईं
सॉकर में स्ट्राइकर के रूप में शानदार कॅरियर के बाद उन्होंने खेल को अलविदा कह दिया। अब वह एक रिकंस्ट्रक्टिव सर्जन बनने के लिए मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई कर रही हैं। नादिया के लिए मानो इतना ही काफी नहीं है, फ्रेंच सीखते-सीखते आज वह 11 भाषाएं धाराप्रवाह बोलती हैं। हाल ही फ़ोर्ब्स ने उन्हें अंतर्राष्ट्रीय खेलों में दुनिया की सबसे शक्तिशाली महिला खिलड़ियों की सूची में शामिल किया है।