21 दिसंबर 2025,

रविवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

अभिनय की दुनिया के विधाता थे संजीव कुमार

अपने दमदार अभिनय से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले संजीव कुमार को अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में वह दिन भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में नायक के रूप में काम करने का अवसर नहीं मिलता था

3 min read
Google source verification

image

Jameel Ahmed Khan

Nov 06, 2016

Sanjeev Kumar

Sanjeev Kumar

मुंबई। गुरूदत्त की असमय मौत के बाद निर्माता निर्देशक के. आसिफ ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म 'लव एंड गॉड' का निर्माण बंद कर दिया और अपनी नई फिल्म 'सस्ता खून महंगा पानी' के निर्माण में जुट गए। राजस्थान के खूबसूरत नगर जोधपुर में हो रही फिल्म की शूटिंग के दौरान एक नया कलाकार फिल्म में अपनी बारी आने का इंतजार करता रहा। इसी तरह लगभग 10 दिन बीत गए और उसे काम करने का अवसर नहीं मिला। बाद में के.आसिफ ने उसे वापस मुंबई लौट जाने को कहा। यह सुनकर उस नए लड़के की आंखों में आंसू आ गए। कुछ दिन बाद के.आसिफ ने सस्ता खून और मंहगा पानी बंद कर दी और एक बार फिर से 'लव एंड गॉड' बनाने की घोषणा की।

गुरूदत्त की मौत के बाद वह अपनी फिल्म के लिए एक ऐसे अभिनेता की तलाश में थे 'जिसकी आंखें भी रूपहले पर्दे पर बोलती हों' और वह अभिनेता उन्हें मिल चुका था। यह अभिनेता वही लड़का था जिसे के. आसिफ ने अपनी फिल्म 'सस्ता खून मंहगा पानी' के शूटिंग के दौरान मुंबई लौट जाने को कहा था। बाद में यही कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में संजीव कुमार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अपने दमदार अभिनय से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले संजीव कुमार को अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में वह दिन भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में नायक के रूप में काम करने का अवसर नहीं मिलता था।

मुंबई में 9 जुलाई 1938 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव कुमार बचपन से ही फिल्मों में नायक बनने का सपना देखा करते थे। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया। वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निर्मित फिल्म 'आरती' के लिए उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया जिसमें वह पास नहीं हो सके। संजीव कुमार को सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में 1965 में प्रदर्शित फिल्म 'निशान' में काम करने का मौका मिला।

वर्ष 1960 से 1968 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। फिल्म 'हम हिंदुस्तानी' के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली, वह उसे स्वीकार करते चले गए। इस बीच उन्होंने स्मगलर, पति-पत्नी, हुस्न और इश्क, बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई।

वर्ष 1968 में प्रदर्शित फिल्म 'शिकार' में संजीव कुमार पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिए। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी, फिर भी संजीव अपने अभिनय की छाप छोडऩे में कामयाब रहे। इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिए उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवॉर्ड भी मिला।

वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म खिलौना की जबरदस्त कामयाबी के बाद संजीव कुमार ने नायक के रूप में अपनी अलग पहचान बना ली। वर्ष 1970 में ही प्रदर्शित फिल्म 'दस्तक' में लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1972 में प्रदर्शित फिल्म 'कोशिश' में उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला। इस फिल्म में गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखों और चेहरे के भाव से दर्शकों को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था, जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाए।

इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिए उन्हें दूसरी बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया। उनके अभिनय की विशेषता यह रही कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिए सदा उपयुक्त रहते थे। फिल्म 'कोशिश' में 'गूंगे' की भूमिका हो या फिर 'शोले' में ठाकुर या सीता और गीता और अनामिका जैसी फिल्मों में लवर ब्वॉय की भूमिका हो अथवा नया दिन नई रात में नौ अलग-अलग भूमिकाएं हर भूमिका को उन्होंने इतनी खूबसूरती से निभाया, जैसे वह उन्हीं के लिए बनी हो।

अभिनय में एकरूपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिए संजीव कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया। इस क्रम में 1975 में प्रदर्शित रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म 'शोले' में वह फिल्म अभिनेत्री जया भादुड़ी के ससुर की भूमिका निभाने से भी नहीं हिचके। हालांकि संजीव कुमार ने फिल्म शोले के पहले जया भादुड़ी के साथ कोशिश और अनामिका मे नायक की भूमिका निभाई थी।

संजीव कुमार दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों में खास पहचान बनाने वाला यह अजीम कलाकार छह नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कह गया।

ये भी पढ़ें

image