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देश को आजादी मिलते देखा, सेना में रहते तीन युद्ध भी देखे, अब आजादी का अमृत महोत्सव देखने का मिल रहा सौभाग्य

रिटायर 102 वर्षीय सुल्लडऱाम ने पत्रिका के साथ बयां की आजादी की आंखों देखी दास्तां

अलवरAug 10, 2022 / 02:20 pm

Ramkaran Katariya

आजादी का अमृत महोत्सव

भिवाड़ी. रिटायर सूबेदार 102 वर्षीय सुल्लडऱाम।

भिवाड़ी. आजादी का महत्व क्या और कितना सुकूनभरा होता है। आज की युवा पीढ़ी को इस मार्मिकता को समझने की महत्ती जरूरत है और स्वतंत्रता सैनानियों के प्रेरक प्रसंगों से आजादी के महत्व के साथ राष्ट्रप्रेम, देशभक्ति को समझ सकते हैं। आजादी की नींव स्वतंत्रता सैनानियों, अमर शहीदों और देश के महापुरुषों के बलिदानों पर टिकी हुई है। ऐसे ही एक स्वतंत्रता सैनानी सेवानिवृत्त 102 वर्षीय सूबेदार सुल्लडऱाम ने अपनी आंखों देखी आजादी की दास्तां पत्रिका के साथ बयां की है।
देश व राज्य की कामधेनु के नाम से विख्यात औद्योगिक नगरी भिवाड़ी के खानपुर गांव निवासी सेवानिवृत्त सूबेदार सुल्लडऱाम ऐसे शख्स हैं, जो आजादी की 75वीं वर्षगांठ पर देशभर में मनाए जा रहे आजादी का अमृत महोत्सव को अपनी आंखों से देख पा रहे है। राजस्थान पत्रिका से बातचीत करते हुए उन्होंने इन क्षणों को अपनी आंखों से देखना सुनहरा अवसर ही नहीं अपना सौभाग्य भी बताया। वे कहते हैं कि देश को आजादी मिलते देखा। सेना में रहते तीन लड़ाईयां भी देखी और अब आजादी का अमृत महोत्सव आंखों से देख गदगद् है। इन क्षणों को वे अपना सौभाग्य मान रहे हैं। सुल्लडऱाम का जीवन वीरता की खूबियों से भरा हुआ है। वे आजादी से पहले दिल्ली कैंट स्थित सीओडी में भर्ती हो गए थे। इसके बाद वे 1947 में भारतीय सेना में भर्ती हुए। सेना में भर्ती होने के बाद 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई उन्होंने देखी। अब सुल्लडऱाम 102 साल के हो चुके हंै और स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। परिवार भी भरा-पूरा है, बावजूद वे अपनी दिनचर्या स्वयं पूरी करते हैं।
आजादी के समय थे 27 साल के
सुल्लडऱाम ने बताया कि जब देश आजाद हुआ, तब उनकी आयु करीब 27 साल थी। देशवासी आजादी की खुशी में झूम रहे थे। आजादी से पूर्व 1940 में उन्होंने दिल्ली कैंट स्थित सीओडी में सेवाएं देना शुरू कर दिया था। इसी दौरान देश में दंगे हो गए। अंग्रेज जाते-जाते देश को दो टुकड़ों में बांटकर हमें आपस में लड़ाते चले गए। उस समय सरकार का यही संदेश था कि दंगे रोके जाए। आजाद होते-होते देश दो टुकड़ों में बंट गया। आजादी की खुशी के साथ गम भी झोली में आ गया। वे बताते हैं कि लोगों की नजर में आजादी का महत्व आज भी है, लेकिन उतना नहीं, जितना कि होना चाहिए। जैसा कि उस समय था। आजादी का महत्व बहुत अधिक है। इसे वही समझ सकता है, जिसने गुलामी देखी। आजादी की लड़ाई में जिन्होंने कुर्बानी दी। खून-पसीना बहाया, आजादी का असली महत्व वही जानते हैं। इन सब संघर्षों के बाद देश आजाद हुआ। उस समय बिना किसी पद-लालच के देश को आजाद कराने में लाखों लोगों ने अपना सर्वस्व बलिदान कर दिया। सुबेदार सुल्लडऱाम कहते हैं कि युवाओं के लिए देश प्रेम सबसे ऊपर होना चाहिए। अंग्रेजों ने हमें जाति, धर्म के नाम पर लड़ाकर शासन किया। आजाद देश गलत दिशा में जा रहा है। जातिवाद, क्षेत्रवाद और अन्य तरीके के पूर्वाग्रह हावी होते जा रहे है। इन सबसे समाज का और देश का भला नहीं होगा।
बांस की लकड़ी से नापकर भर्ती कर था लिया
सुल्लडऱाम 102 साल के हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि उनकी भर्ती भिवाड़ी में ही हुई थी। आर्मी ने यहां कैंप लगाया था। बांस की लकड़ी से नापकर भर्ती कर लिया था। भिवाड़ी के साथ धारूहेड़ा और सैदपुर में भी कैंप लगे थे। तब बहुत कम युवा सेना में भर्ती होते थे। आर्मी के अधिकारी युवाओं को घर-घर लेने आते थे और प्रेरित करते थे। वह 1940 में दिल्ली कैंट सीओडी में भर्ती हुआ और यहां 1947 तक नौकरी की। इसके बाद 1950 से 1977 तक आर्मी में तोपखाने में नौकरी की। इस दौरान चीन से 1962 में युद्ध हुआ तब उनकी पोस्टिंग बरेली में थी, 1965 में पाकिस्तान से युद्ध हुआ, तब पोस्टिंग गुवाहाटी में थी। पाकिस्तान से 1971 में युद्ध हुआ तब नियुक्ति अंबाला में थी। युद्ध के दौरान हर बार उनके पास अलर्ट मैसेज आया। कंपनी युद्ध में जाने के लिए तैयार रहे, लेकिन उससे पहले ही युद्ध विराम हो गए। गांव के पूर्व सरपंच धनीराम बताते हैं कि सुबेदार सुल्लडऱाम अभी भी काफी सक्रिय रहते हैं।


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