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ये हैं भारत की ‘ग्रेटा थुनबर्ग’ रिद्धिमा पांडे

रिद्धिमा दुनिया की उन 16युवा क्लाइमेंट एक्टिविस्ट में से एक हैं जो अपनी सरकारों से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कड़े कदम उछाने को लेकर संघर्ष कर रही हैं।

जयपुरOct 12, 2020 / 03:10 pm

Mohmad Imran

ये हैं भारत की 'ग्रेटा थुनबर्ग' रिद्धिमा पांडे, प्रधानमंत्री को मुंबई आरे  पेड़ न लिए भी लिख चुकी हैं

ये हैं भारत की ‘ग्रेटा थुनबर्ग’ रिद्धिमा पांडे, प्रधानमंत्री को मुंबई आरे पेड़ न लिए भी लिख चुकी हैं

सुरक्षित भविष्य के लिए दुनियाभर में किशोरों और युवाओं ने सरकारों की लापरवाही के विरुद्ध परचम बुलंद कर रखा है। इस मुहिम के लिए स्वीडन (Swedan) की पर्यावरण कार्यकर्ता (Climate Change Activist) ग्रेटा थुनबर्ग (Greta Thunberg) को 2019 में टाइम पर्सन ऑफ द ईयर (Time Person of the Year) के सम्मान से भी नवाजा गया था। भारत में पर्यावरण संरक्षण (Environment Protection) और जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के विरुद्ध युवाओं की आवाज बनीं हैं 12 साल की रिद्धिमा पांडे। हरिद्वार (Haridwar) निवासी रिद्धिमा उन 16 प्रमुख बाल याचिकाकर्ताओं और क्लाइमेट एक्टिविस्ट में शुमार हैं जो दुनियाभर में राजनीतिज्ञों को पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ सशक्त कदम उठाने के लिए दबाव बना रही हैं।
ये हैं भारत की 'ग्रेटा थुनबर्ग' रिद्धिमा पांडे, प्रधानमंत्री को मुंबई आरे पेड़ न लिए भी लिख चुकी हैं

ऐसे बनीं बदलाव चेहरा
उन्होंने 2017 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (National Green Tribunal) में एक याचिका दायर की जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि पर्यावरण संरक्षण और जलवायु संकट से निपटने में राज्यों की विफलता उनके बाल अधिकारों का उल्लंघन है। यह बाल अधिकारों पर कन्वेंशन के लिए तीसरे वैकल्पिक प्रोटोकॉल के माध्यम से दायर किया गया था। यह एक स्वैच्छिक तंत्र है जो बच्चों या वयस्कों को उनकी सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) से सीधे अपील करने की अनुमति देता है।

ये हैं भारत की 'ग्रेटा थुनबर्ग' रिद्धिमा पांडे, प्रधानमंत्री को मुंबई आरे पेड़ न लिए भी लिख चुकी हैं

एक आपदा ने बदली ज़िंदगी
छह साल पहले रिद्धिमा पांडे अपने परिवार के साथ नैनीताल से हरिद्वार शिफ्ट हो गईं। हर साल जुलाई में यहां कंवर यात्रा नामक एक त्योहार होता है जो पवित्र गंगा नदी के पास आयोजित होता है। लेकिन हाल ही में, इस क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव सामने आने लगे हैं। लगातार बढ़ रहे तापमान के कारण गंगा नदी के जैव संतुलन को खतरे में डाल दिया है। यहां अब सूखे से लेकर निम्न जल स्तर जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं। उन्होंने इस क्षेत्र में होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों पर प्रतिबंध लगाने को कहा है। उनका कहना है कि वे भविष्य बचाने के लिए लड़ रही हैं। 2013 में आई भयंकर बाढ़ ने भी उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया। उनके पिता भी एक पर्यावरण संरक्षण कार्यकर्ता हैं। अपनी याचिका में उन्होंने भारत सरकार (Government of India) को एक कार्बन बजट (Carbon Budget), नेशनल क्लाइमेट रिकवरी प्लान (National Climate Recovery Plan) बनाने और औद्योगिक प्रदूषण पर कारगर नीति लागू करने के लिए कहा है।

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