विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा कोविड-19 के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। कुछ सांस्कृतिक कारणों से भी चीन में ऐसे प्रकोप सामने आए हैं। पत्रकार मेलिंडा लियू ने 2017 में लिखा था कि चीन में लोगों का मानना है कि ताजा मांस अधिक स्वादिष्ट और फ्रिज में रखे मांस की बजाय ज्यादा स्वास्थ्यवद्र्धक होता है। इसी कारण मीट बाजारों में लोगों की भीड़ इंसानों में वायरस के उत्परिवर्तन का कारण बनती है।
बीमार होने पर यहां लोग टीसीएम (पारंपरिक चीनी दवा) की तलाश करते हैं, जहां चिकित्सक नियमित रूप से लक्षणों के आधार पर गलत इलाज करते हैं। फिर एक्यूपंक्चर, हर्बल या पशु आधारित उपचार की पेशकश करते हैं। जो प्रकोप के दौरान मृत्युदर बढ़ाने में सहायक होता है और संक्रमित व्यक्ति को जनता के बीच जाकर और अधिक लोगों को संक्रमित करने का मौका देता है। चीन में बड़ी संख्या में देखी जानी वाली पोस्ट टीसीएम ने पहले ही कई तरह के भ्रामक उपचार लोगों को सुझाए हैं, जिनमें शहद, खोपड़ी में मिलने वाले तरल से इलाज का तरीका बताया जाता है। अब कोरोना में फोर्सीथिया (एक प्रकार की वनौषधि) से इलाज को प्रचारित किया जा रहा है। सवाल ये है कि भविष्य में चीन ऐसे प्रकोप और वायरस से बचने के लिए कोई नीति तैयार करेगा? जिससे ऐसी पद्धति पर रोक लग सके।
चीन गलत सूचना, गोपनीयता और सेंसरशिप के लिए भी कुख्यात है। जनवरी के शुरुआत में चीन के सरकारी अधिकारियों ने बताया कि नए संक्रमण के प्रसार को प्रभावी ढंग से रोक दिया गया है। यह सच नहीं था। उसी समय केंद्रीय सरकार ने उन स्वास्थ्य विशेषज्ञों को भी धमकाया, जिन्होंने यह सूचना देने का प्रयास किया। युवा डॉक्टर ली वेनलियांग ने नए कोरोनावायरस के बारे में दूसरों को चेतावनी देने का प्रयास किया तो उन्हें पुलिस की फटकार मिली। इसके बाद ली खुद कोविड-19 के शिकार हो गए।